________________
श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
७७
अर्थ- -हे कुसुमवर्षाषिपते [ अाफाश से कल्पवृक्षों के फूलों की सुगन्धित जल और मन्द मन्द हवा के साथ जो कर्णमुखी और देवकृत वर्षा होती है वह भापकी मनोहर पदमावली के समान शोभायमान होती है। मा कुपति मारिहा गरे ।३३।। ॐ ह्रीं समस्तपुष्पजातिवृष्टिप्रातिहास पलीमहावीजाक्षरसहिताम
श्रीवृषभजिनेन्द्राय अय॑म् ।।३३।। Like Thuy divine utteranccs falls from the sky the shower of celestial 1104 cts such as the Mandara, Nameru, Parijata and Santanaka accompanied by gentle breeze that is made charming with scented water drops, 33.
गर्भ संरक्षक शुम्भप्रभा - वलय भूरि-विभा विभोस्ते,
___ लोकत्रये द्युतिमतां द्युतिमाक्षिपन्ती । प्रोचदिवाकरनिरन्तरभूरिसंख्या
दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सौमसौम्याम् ॥३४॥ भाममण्डलं सूर्यसहस्रतुल्यं,
चक्षुर्मनोऽल्लादकरं नराणाम् । सम्बाधिताज्ञान-तमोवितानं,
तत्संयुतं देव ! सुपूजयामि ॥ तीन लोक की सुन्दरता यदि, मूर्तिमान बनकर आवे । तन-भा-मंडल की छवि लखकर, तब सन्मुख शरमा जावे ।। कोटिसूर्य के ही प्रताप सम, किन्तु नहीं कुछ भी माताप । जिनके द्वारा चन्द्र सुशीतल, होता निष्प्रभ अपने आप ।।३४।।