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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
There sounds in the sky the celectial daun, which fills the directions with its deep and loud note, and which is capable of bestowing glory and prosperity on all the beings of the three worlds, and which proclaims the victory-sound of the lord of supreme righteousness, proclaiming Thy famc. 32.
सर्व श्वरसंहारक मन्दार • सुन्दर - नमरु • सुपारिजास
सन्तानमाद - कुसुमोत्कर - वृष्टिरद्धा । गन्धोदबिन्दुशुभ - मन्दमरुत्प्रपाता,
दिव्या दिवः पतति ते वचसां तति , ।।३३।। मन्दार-कल्पद्रुम-पारिजात-चम्पाब्ज-सन्तानक-पुष्पवृष्टिः । मरुत्प्रयाता जलबिन्दुयुक्ता, यस्य प्रभावाच्च तमर्चयामि ।। कल्पवृक्ष के कुसुम मनोहर, पारिजात एवं मंदार । गन्धोदक को मन्द वृष्टि कर - ते हैं प्रमुदित देव उदार ॥ तथा साथ ही नभ से बहती, धीमी धीमी मन्द पवन । पंक्ति बांध कर बिखर रहे हों, मानों तेरे दिव्य-वचन ॥३३।।
(ऋद्धि) ॐ ह्रीं भर्ह णमो सयोसहिपत्ताग।
( मंत्र ) ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं इस ध्यानसिखि-परमयोगीश्वराय नमो नमः स्वाहा ।
(विधि) थासहित ऋद्धि-मंत्र द्वारा कच्चे धागे को मंत्रित कर हाय में बांधने से कतरा, तिजारी, तापज्वर पादि सब रोग दूर होते है ॥३६॥