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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
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अशोकवृक्षाः सुकृता विचित्राः,
___ छायाघना नाथ ! सुपुण्ययोगात् । तवोपरि प्रीतजनेषु नित्यं,
सुखपदाः स्युः परमार्थना भाः। उन्नत तरु प्रशोक के आश्रित, निर्मल किरगोन्नत वाला । रूप आपका दिपता सुन्दर, तमहर मनहर छवि वाला ।। वितरण किरण निकर तमहारक,दिनकर घनके अधिक समीप। नीलाचल पर्वत पर होकर, नीराजन करता ले दीप ॥२८॥
(वि) ॐ ह्रीं अहं गमो महातबाणं । ,
[ मंत्र ) ॐ नमो भगवते जय-विजय जूभन्य जंभव मोहय मोहय सर्व सिद्धि सम्पत्ति. सौख्यं च कुरु ? स्वाहा ।
(विधि) प्रतिदिन श्रद्धासहित १०८ शर ऋद्धि-मंत्र जपने से सभी अच्छे कार्य सिद्ध होते हैं और व्यापार में भी लाभ होता है ।।२८॥
पर्ष-हे पतिशयरूप ! ऊँचे और हरे "अशोकवन" के नीचे प्रात्पका स्वर्णमय उम्पसप ऐसा मालूम होता है अंसा काले काले मेघ के मीचे पीसवर्ष सूर्य का मण्डल । यह प्रशोकल प्रातिहार्य का पर्णन है ॥२८॥ ॐ ह्रीं अशोकतरुविराजमानाय क्लीमहावोजाक्षरसहिताय
श्रीवृषभजिनेन्द्राय मय॑म् । Thy shining forc, the rays of which go upwards, and which is really very much lustrous and dispels the expanse of darkness, looks excellently beutiful vader the Ashoka-tree the orb of the sun by the side of clouds. 28.