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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
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अतिरिक्त कोई दूसरा निरूपद्रव मोक्ष का मार्ग नहीं होने से प्रापको हो मोक्ष का मार्ग मानते हैं ॥२३॥
ॐ ह्रीं सहस्रनामाधीश्वराय क्लीमहाबीजाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय श्रोवृषभदेवाय अध्यंम् ।।२।। The great sarres consider You to be the Supreme Being. Who possesses the effulgence of the sun, is fres from blemishes, and is beyond darkness. Having perfectly realized You, meu even conquer death. O Sage of sages! there is no other a auspicious path (except You) leading to Supreme blessedacs. 23.
शिरोरोग शामक त्वामव्ययं विभचिन्त्य - मसंख्यमाद्यं,
ब्रह्माण - मोश्वर - मनन्त मनङ्गकेतुम् । योगीश्वरं विदित - योग - मनेक - मेकं,
ज्ञानस्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः ॥२४॥ त्वमिह देवहरि जिननायकः,
प्रभुवरः यतिराज-मुनीश्वरः । त्वदभिधानमहो जगतां प्रभो ।
प्रतिक्षणं भवतु प्रतिमानसम् ।। तुम्हें प्राद्य अक्षय अनन्त प्रभु, एकानेक तथा योगीश । ब्रह्मा ईश्वर या जगदीश्वर, विदितयोग मुनिनाथ मुनीश ।। विमल ज्ञानमय या मकरध्वज, जगन्नाथ जगपति जगदीश । इत्यादिक नामों कर माने, सन्त निरन्तर विभो निधीश ॥२४॥