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यो भक्तामर महामण्डल पूजा
रहते हैं । सूर्य को राहु ग्रस लेता है, परन्तु प्राग तक वह मापका स्पर्श तक नहीं कर सका । सूर्य दिन में क्रम झम से केवल एक द्वीप के मर्षमाग हो ही प्रकाशित करता है, परन्तु श्राप समस्त लोक को एकसाथ प्रकाशित करते हैं। और सूर्य के प्रकाश को मेघ हक देते हैं, परन्तु पापके प्रकाश (मान) को कोई भी नहीं इक सकता ॥१५॥ ॐ ह्रीं पापान्धकारनिवारणाय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय श्रीवृषभदेवाय अर्मम् ।।१।। O Great Sage, Thou knowest on sitting, nor art Thou cclipsed by Rahu. Thou dost illumine suddenly all the worlds at one and the sume time. The water-carrying clouds too can never bedim Thy great glory. Hence in respect of effulgence Thou art greater than the sun in this world. 17.
वासन्य स्तम्भक नित्योदयं दलित - मोह - महान्धकार,
गम्यं न राहुववनस्य न वारिवानाम् । विभ्राजते तय मुखाग्ज मनल्प-कांति,
विद्योतपत्जगदपूर्व-शशाङ्क-बिम्बम् ॥१८॥ जिनशशी प्रकरोति विभासकं,
सकलभव्य-सुपावनं घनं । निशिदिनं तिमिरप्रतिघातको,
वरमहं सयजामि जलादिकैः ।। मोह महातम दलने वाला, सदा उदित रहने वाला। राहु न बादल से दबता पर, सदा स्वच्छ रहने वाला ।।