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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
___ मङ्गलकलश में हल्दी, सुपारी, पुष्प, नकद ।।) रखकर ऊपर सौषा श्रीफल रखकर पोतवस्त्र और पञ्चवर्ण सूत से उसे सुन्दर रीति से बांधना चाहिये । उसके भीतर प्रासुक जल भर कर उसमें पर्याप्त मात्रा में लवंग-चूर्ण डालना चाहिये । वह मङ्गलकलश प्रतिमा की बांई पोर एक छोटे चौके पर स्थापित करना चाहिये । पश्चात्
विधिपूर्वक जलधारा (भिषेक) मौर शान्तिधारा कर २४, ४८, या ७२ घंटे तक 'प्रखण्ड पाठ' करने का साकल्प कर जयध्वनिपूर्वक श्रीभक्तामरस्तोत्र का पाठ प्रारम्भ करना चाहिये ।।
यह अखपट पाल पनिमा के सामने बैठकर ममान स्वर में एकस्थल पर अनेक व्यक्ति संकल्पित समय तक करें। यदि बीच में पाठकर्ता बदले जावे तो जब तक नवीन पाटकर्ता पाठ-प्रारम्भ न कर दे तब तक पूर्व पाटकर्ता अपना स्थान नहीं छोड़ें ।
संकल्पित समय पूरा होने पर मङ्गलाष्टक तथा शान्तिपाठ पढ़ कर चौकी पाटे उहाकर उचित स्थान पर टेबिल जमाकर पुन: भगवान का अभिषेक एवं यन्त्र को यान्तिधारा की जाय । पश्चात्
विधिपूर्वक नित्यपूजा' कर श्री भक्तामर महामण्डन पूजा (विधान) किया जावे । पूजन समाप्ति के बाद शान्ति कालशाभिषेक (पुण्याहवाचन) शान्ति-विसर्जन, प्रारती, परिकमा वगैरह यथाविधि किये जावें। यदि पाटके साथ जाप्य भी किया गया हो तो विधिपूर्वक हवन भी किया जाये ।
प्रावश्यक सामग्री - हल्दीगांठ, सुपारी, श्रीफल, पीलेसरसों, पीतवस्त्र, पञ्चवर्णसूत, शुद्ध घुत, रुई, दीपक, माचिस, अगरबत्ती, लवङ्ग, शुद्ध धूप, धूपदान, फूलमालाएँ, नकद रुपमा, चुम्नियां, मङ्गलकलश, चीकी, पाटे, ग्रासनी, दीपक बड़े, दीपक छोटे, कंडील, अष्टद्रव्य, बनयान, नवीन धोती दुपट्टे, छन्ना, मंगौछी, रूमाल, पञ्चवर्ण पांवस, तखत, प्रष्ट-मङ्गलद्रव्य, प्रष्टप्रासिहाय, छत्रत्रय, पाठ की पुस्तकें ।