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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
गिर गिर जाते प्रलय पवन से, तो फिर क्या वह मेरु-शिखर | हिल सकता है रंचमात्र भी, पाकर भंझावात प्रखर ।।१२।। (ऋद्धि) ॐ ह्रीं अर्ह णमो दशपुब्बीणं ।
( मंत्र ) ॐ ह्रीं श्री श्री श्रं श्र थ द सरस्वती भगवती "वद्याप्रसादं कुरु २ स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धापूर्वक ५४ दिन १००० जाप करे । २१ बार तैलमंत्रित कर मुख पर लगाने से सभा में सम्मान बढ़ता है ।। १५ ।। श्रयं --- हे मनोविजयिन् ! प्रलय की पवन से यद्यपि अनेक पत कम्पित हो जाते हैं परन्तु सुमेरु पर्वत लेशमात्र भी चलापयान नहीं होता, उसी प्रकार देवाङ्गनाओं ने यद्यपि अनेक महान् देवों का चित्त चलायमान कर दिया, परन्तु प्रापका गम्भीर चित्त किसी के द्वारा दामात्र भी चलायमान नहीं किया जा सका ॥ १२ ॥
ॐ ह्रीं मेरुवन्मनोबलकररणाय क्लींमहाबीजाक्षरसहिताय हृदयस्थिताय श्रीवृषभदेवाय मध्यंम् ||१५||
No wonder that Your mind was not in the least perturbed even by the celestial damsels. Is the peak of Mandaramountain ever shaken by the mountain-shaking winds of Doomsday ? 15.
सर्व विजयवाक
निर्धूम
वतिरपर्वाजत तैलपूर:, कृत्स्नं जगत्त्रयमिदं प्रकटीकरोषि ।
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गम्यो न जातु मरुतां चलिताचलानां,
दीपोsपरस्त्वमसि नाथ ! जगत्प्रकाशः ११६।
जगति दीपक इव जिन ! देवराट् प्रकटितं सकलं भुवनत्रयं पद- सरोज-युगं तु समर्चये, विमलनीरमुखाष्टविधैस्तव ||