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श्री भक्तामर महामण्डस पूजा
O supreine ornament of all the three worlds ! As many indeed in this world were the atoms possessed of the lustre of non-attachment, that went to the composi. tion of your body and that is why no other form like that of Yours exists on this custh. 12.
लक्ष्मी-सुल-प्रदायक, स्वशरीररक्षक सक्नं य सुर - नरोरग - नेत्रहारि.
निःशेष - निजित - जगस्त्रितयोपमानम् । विम्बं कलङ्क - मलिनं क्व निशाकरस्य,
पद्वासरे भवति पाण्डु पलाशकल्पम् ॥१३॥ सुरनरोरग-मानसहारकं, सुवदनं शशितुल्यमतं त्वकं । जगति नाथ ! जिनस्य तवात्र भो, परियजे विधिनात्र
जिन मुदा ॥१३॥ कहां आपका मुख अतिसुन्दर, मुर-नर-उरग नेत्र-हारी । जिसने जीत लिये सब जग के, जितने थे उफ्माधारी ।। कहाँ कलंकी बंक चन्द्रमा, रंक-समान कीट-सा दीन । जो पलाश-सा फीका पड़ता, दिन में हो करके छबि-छीन ।।१३।।
(ऋधि) ॐ ह्रीं पई णमो ऋजुमदीयं ।
{ मंत्र ) ॐ ह्रीं श्रीं हूं सः ह्रीं ह्रां ह्रीं क्रां दी द्रः मोहिनि सर्वजनवश्यं कुरु कुरु स्वाहा ।
(विधि) श्रद्धासहित ७ दिन तक प्रतिदिन १००० ऋद्धिमत्र का जप करने तथा ७ कंकरियों को १०८ बार मंत्रित कर चारों ओर फेंकने से चोर चोरी नहीं कर पाते और मार्ग में भय नहीं रहता ॥१३॥
मर्ष-हे प्रभो ! प्रापके मुल को चन्द्रमा को उपमा देने वाले विद्वान् गलती करते हैं। क्योंकि आपके मुख की प्रभा कभी फोकी नहीं