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श्री भक्तामर महामण्डल पूजा
-.--.... - तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्यां,
यत्तं समानमपरं न हि रूपमस्ति ।।१२।। जिनविभो ! तव रूपमिव क्वचित्,
___ न भवतीह जने विभवान्विते ।। भवति पापलयं जिनदर्शनात्,
जिन ! सदार्चनतां प्रकरोमि ते ।। जिन जितने जसे अणुमों से, निर्मापित प्रभु तेरी देह । थे उतने वैसे प्रण गम में, शांत-
पाय निकन्देह ।। हे त्रिभुवन के शिरोभाग के, अद्वितीय प्राभूषण - रूप । इसीलिए तो आप सरीखा, नहीं दूसरों का है रूप ।।१२।।
(ऋद्धि , ॐ ह्रीं मई णमो बोहिमबुद्धोणं ।
{ मंत्र) ॐ प्रो प्रां पं प्रः सर्वराजप्रडामोहिनि सर्वजनवश्य कुरु कुरु स्वाहा ।
(विधि) बवासहित ४२ दिन तक प्रतिदिन १००० ऋद्धिमंत्र जपमा पाहिए। एक पाव तिलतेल को उक्त मंत्र से मंत्रित कर हाथी को पिलाने से उसका मद उतर जाता है ।।१२।।
प्रर्प-हे सोकशिरोमण ! प्रापके शरीर की रचना लिन पुद्गल परमाणुओं से हुई है वे परमाणु संसार में उतने ही थे। परि प्रषिक होते तो आप सा रूप पोर का भी होना चाहिये था, किन्तु वास्तव में प्रापके समान सुन्दर पृथिवी पर कोई दूसरा महीं है ॥१२॥
ॐ ह्रीं वांछितरूपफलशक्तये बलीमहावीजाक्षरसहिताय
हृदयस्थिताय श्रीवृषभदेवाम प्रध्यम् ।।१६।।