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भी मक्तामर महामत भूषा
....--. -.. -- - ---- -- - - .. विघ्नान निवारय निवारय मां रक्ष रक्ष स्वाहा । यह मन्त्र पढ़कर सर्व दिशानों में पीले सरसों ोपे ।
परिणाम-शुद्धि-मन्त्र विधि विधातुं यजनोत्सवेऽहं, गेहादिमूर्खामपनोदयामि । अनन्यचित्ताकृतिमादधामि, स्वर्गादिलक्ष्मीमपि हापयामि ।
यह पद्य पड़कर प्रतिज्ञा करे कि मैं इस विधान पर्यन्त व्यापारादि की चिन्ता छोड़ एकाग्रता से कार्य करूंगा ।
रकासरवन्धन मात्र मङ्गल भगवान्वीरो, मङ्गलं गौतमो गणी।
मङ्गलं कुन्दकुन्दाद्या, जनधर्मोऽ स्तु मङ्गलम् ।। प्रों ह्रीं पथवर्णसूत्रेण करे रक्षाबन्धनं करोमि ।
सिलक-मन्त्र ओं ह्रां ह्रीं ह्र हौं ह्रः मम
सर्वाङ्गशुद्धिं कुरु कुरु स्वाहा । यह मन्त्र पढ़कर प्रङ्गशुद्धि के लिये तिलक लगाना राहिये।
रमा मात्र ओं नमोऽहंते सर्व रक्ष रक्ष ह फट् स्वाहा ।
पीले सरसों और पुरुषों को इस मन्त्र से सात बार मन्त्रित कर फूक देकर सर्व पात्रों पर छिटकना चाहिये ।
ओं ह्रीं मध्यलोके जम्बूद्वीपे भरतक्षेत्रे आर्यखण्डे...... .... 'देशे........"नगरे......."धेत्यालमे......... श्रीवीरनिर्वाणमम्वत्सरे........... मासे ...........पो ..........."तिथी शुभ