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लाता है, उसके प्रति तो उसका विशेष कर्त्तव्य हो जाता है । हम लोग अपने अनाजपात को साफ करके घड़ियों गेगल आदि कड़ियों पर फेंक देते हैं, किन्तु यदि हम उसकी किसी सार्वजनिक स्थान पर उलवा दिया करें तो, उससे अनेक पक्षियों को लाभ हो सकता है। अनेक लोग ऐसा रोप्रादा होती है कि वह उन प्रकृति के संगीत बाहकों को लोहे के पिंजरे में बन्द कर देते हैं, अनेक व्यक्ति तोते, मैना, आदि अनेक प्रकार के पक्षियों का पिजरे में बन्द रखते हैं, किन्तु वह यह नहीं समझते कि प्रत्येक पक्षी जितना सुन्दर खुली वायु में स्वतन्त्रता पूर्वक श्वास लेकर गाता है उतना पिंजरे के अन्दर बन्द रह कर कभी नहीं गा सकता वास्तव में हरे-हरे खेतों से उड़कर नीले आकाश में गाते हुए जाने वाले पक्षियों को देखकर कितना प्रानन्द होता है ? इस गीत को सुनकर कभी-कभी मन नहीं भरता । किन्तु स्वार्थी मनुष्य उनको पिंजरे में बन्द करके ही संतुष्ट नहीं होता, वह उनको पकड़ता है उनका शिकार करता है और उनपर अनेक प्रकार के अत्याचार करता है। कई एक व्यक्ति तो इन, निर्बल प्राणियों को मारकाट कर बड़ी शान से कहा करते हैं, कि आज हमने इतने पक्षियों का शिकार किया । शिकारियों की अपेक्षा बहेलिये या चिडिमार लोग इन पर अधिक अत्याचार करते हैं।
कछ वर्ष पूर्व कनाडा के वेल्वेक नामक नगर में एक बहेलिये में एक छोटी लोमड़ी को जीवित ही जाल में पकडलिया। उसने उसको अपने घर ले जाकर उस स्थान पर टांग दिया जहाँ अनेक खाले टंगी हुई थी। उस समय वहां एक फोटोग्राफर भी था । यह उन खालों का फोटो लेना चाहता था। किन्तु उसने लोमड़ी को छटपटाते देखकर बहेलिये के निर्दयतापूर्ण कार्य का विरोध किया और कहा कि लोमड़ी के इधर उधर हिलते समय फोटो किस प्रकार लिया जा सकता है। इस पर बहेलिये ने लोमडी को उतारने के स्थान में उसकी अगली टांगों को एक रस्सी में बांधकर आगे को इसप्रकार खींच कर वांध दिया कि वह हिलाल भी न सके। इसके बाद फोटोग्राफर ने फोटो ले लिया। वह इस फोटो को पशुनिर्दयता निवारक सभा में भेजने वाला था। सारांश यह है कि पशुनिर्दयता निवारक कानून के अनुसार अनेक व्यक्तियों को छोटे-छोटे अपराधों में दण्ड दिया जाता है, किन्तु बहेलियों
दक्षिणी अरकाट के विरुषचलम् तालुक के मदुवेत्तिमंगलम मंदिर में एक साथ सात भैसों को काटकर उनकी बलि दी जाती है।
और यह पूजोत्सव का वहां एक साधारण रूप है।
और शिकारियों पर उक्त कानून लागू नहीं होता । किसी बच्चे के हाथ में तो जब कभी कोई कुत्ते या बिल्ली का बच्चा पड़ जाता है, उसकी आफत ही पा जाती है ।
उन्नीसवीं शताब्दी में बड़े-बड़े चिकित्सकों ने रोग और मृत्यु में कष्ट कम करने का बड़ा भारी उद्योग किया है। एडिनबरो के डाक्टर सिम्पसन को आपरेशन के समय रोगियों का तड़पना और चिल्लाना देखकर बड़ी दया प्राई । प्रतएव उसने बेहोश करने की प्रौषधि को खोज निकाला।
अमेरिका में पशुओं के प्रति दयाभाव प्रदर्शित करने का प्रचार रेडियो, समाचार पत्र और व्याख्यानों द्वारा किया जाता है। वहीं अनेक समितियाँ जीव दया का प्रचार कर रही है। इस विषय में वहां प्रतिवर्ष संकड़ों टैक्ट निकलते हैं। रैबरेंड डाक्टर हान पेनहालरीस ने तो जीव दया के विषय में एक सहस्र से भी अधिक कविताएं लिखी हैं।