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(ग) व्यापार के नाम पर हिसा-महाभारत के अनुसार मांस तथा चमड़े की वस्तुए खरीदना, बेचना और ऐसा करने का
मत देना। (घ) अहिंसा के नाम पर हिंसा-कुत्ता प्रादि पशु के गहरा जखम हो रहा है, कीड़े पड़ गये, मवाद हो गया, दुस्ख से चिल्लाता
है तो उसका इलाज करने के स्थान पर, पीड़ा से छुटाने के बहाने से उसे जान से मार देना। यदि यही दया है तो अपने
कुटम्बियों को जो शारीरिक पीड़ा के कारण उनसे भी अधिक दुःखी हैं क्यों नहीं जान से मार देते? (5) सुधार के नाम पर हिंसा-बड़ों का कहना है 'नीयत के साथ बरकत्त होती है। जब से हमने अनाज की बचत के
लिये चहे, कत्ते, बन्दर टिडी आदि जीवों को मारना प्रारम्भ किया अनाज की अधिक पैदावार तथा अच्छी मरत होना
ही बन्द हो गई। (च) धर्म के नाम पर हिसा-देवी-देवताओं के नाम पर तथा यज्ञों में जीव बलि करना और उससे स्वर्ग को
समझना। योजन के नाम पर हिसा-मांस का त्याग करने के स्थान पर मछलियों की काश्त करके मांस भक्षण का प्रचार
करना और कराना। (ज) विज्ञान के नाम पर हिसा-शारीर की रचना और नसें-हड्डी आदि चित्रादि से समझाने की बजाय असंख्यात खरगोश
तथा मेंढक आदि को चीर फेंकना। (क) दिल बहलाव के नाम पर हिंसा-दूसरों की निन्दा करके, गाली देकर, हंसी उड़ाकर, चूहे को पकड़कर दिल्ली के
निकट छोड़कर, शिकार खेलकर, तीतर बटेर लड़वाकर और दूसरों को सत्ताकर मानन्द मानना। 1-1 ग्रहन्त भक्ति-श्री भर्तृहरि कृत, शतकत्रय के अनुसार 'अर्हन्त' समस्त त्यागियों में मुख्य हैं। स्कन्ध पराण अनसार, वही जिह्वा है जिससे जिनेन्द्र की पूजा की जावे वही दृष्टि है जो जिनेन्द्र के दर्शनों में तल्लीन हो और बढी मत जिनेन्द्र में रत हो। विष्णु पुराण के अनुसार, अर्हन्त मत (जैनधर्म) से बढ़कर स्वर्ग मोर मोक्ष का देने वाला कोई दसरा
नहीं है। मदाराक्षस नाटक में अर्हन्तों के शासन को स्वीकार करने की शिक्षा है। महाभारत में जिले का कथन है।' मुहर्त चिन्तामणि नाम के ज्योतिष ग्रन्थ में जिनदेन मी सपना का जाले है। यह सिखाई देव आप विधाता हैं, अपनी बुद्धि से बड़े भारी रथ की तरह संसार चक्र को चलाते हैं। प्रापको बद्धि हमारे का लिये हो। हम आपका मित्र के समान सदा संसर्ग चाहते हैं। प्रहन्तदेव से ज्ञान का अंश प्राप्त करके देवता पवित्र होते देशनिदेव! इस वेदी पर सब मनुष्यों से पहले अर्हन्तदेव का मन से पूजन और फिर उनका माहवान करो। पवनदेवप्रयत देव, इन्द्रदेव और श्री देवताओं की भांति महन्त का पूजन करो ये सर्वश हैं। जो मनुष्य महन्तों की पूजा करता स्वर देव उस मनुष्य की पूजा करते हैं |
- - -- - - -- - 8. He who purchases sells deals cooks or eat flesh comits hiasa.
-Mahabharat (Anu) 115/24 २-४. इसी ग्रन्थ के कुटनोट । ५. 'काल नेमि महावीरः शौरि शुरि जिनेश्वरः (अ० पर्व) अ० १४६ । ६. शिवोन युग्मेद्वितनौ च देव्यः क्षुद्राश्चरे सर्व इमेस्थिरक्षे ।
पुष्यगृहाविप्न पयक्ष सर्प भूतादयोत्ये श्रवणे जिनश्च ।।६३॥ नक्षत्र २ ७. हम तो ममहन्ते जातवेदरो रथमिव संमहेमा मनीषया।
भद्राहिनः प्रेमतिरस्य संघग्ने सत्ये मारिषगमावय तब ॥ऋग्वेद मं० १, म०१५, सुत्र ६४ ८. ता वृधन्तावनु छुम्माय देवावदमा ।
अर्हन्ताचित्पुरो दधेऽशेव देवावर्वते ।।--अ० मं०५, अ०६ सू०१६ १. ईडितो अग्ने सनसानो अर्हन्तदेवात्यक्षि मानुषत्पूर्वो अद्य ।
स आवह ममता शर्थों अच्युतमिन्द्र नरोहिषर्द यजध्वम् ।। ऋग्वेद मंडल २ अ० ११ सूक्त ३ १०. अर्हन्ताये सुदानवो नरो असामि वावसः ।।
प्रवश यज्ञियेम्यो दियो अमरुद्भः ।। - अ० म० ५ अ०४,०५२
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