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जाती थी। प्रतीत तो ऐसा भी होता है कि नेत्रकम्प, बाहुस्पन्दन आदि के द्वारा इष्ट अनिष्ट घटनाओं के सन्देश स्वतः पहुंचाने में यही महास्कन्ध सहायता प्रदान करता है। यह व्यापक होते हुए भी सूक्ष्म बताया गया है ।
जैन धर्म में पानी छानकर पीने की प्राज्ञा है, क्योंकि इससे जल के जीवों की प्राण विराधना (हिंसा) नहीं होने पाती याज के अणुवीक्षण यन्त्र (Miscroscope) ने यह प्रत्यक्ष दिखा दिया कि जल में चलते-फिरते छोटे-छोटे बहुत से जीव पये जाते हैं। कितनी विचित्र बात है कि जिनजीवों का पता हम अनेक यन्त्रों की सहायता से कठिनता पूर्वक प्राप्त करते हैं, उनको हमारे प्राचार्य अपने अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वारा बिना अवलम्बन के जानते थे।
अहिंसा व्रत की रक्षा के लिए जैन धर्म में रात्रि भोजन त्याग की शिक्षा दी गई है। वर्तमान विज्ञान भी यह बताता है कि सूर्यास्त होने के बाद बहुत से सूक्ष्म जीव उत्पन्न होकर विचरण करने लगते हैं, अतः दिन का भोजन करना उचित है इस विषय का समर्थन बंद्यक ग्रंथ भी करते हैं।
जैन धर्म में बताया गया है कि बनस्पति में प्राण है । इसके विषय में जैनाचार्यों ने बहुत बारीकी के साथ विवेचन किया है। स्त्र विज्ञानाचार्य जगदीशचन्द्र वसू महाशय ने अपने यन्त्रों द्वारा यह प्रत्यक्ष सिद्ध कर दिखाया कि हमारे समान वृक्षों में चेतना है और वे सुख-दुःख का अनुभव करते हैं।
जैन धर्म ने बताया कि बस्तु का विनाश नहीं होता उसकी अवस्थाओं में परिवर्तन अवश्य हुमा करता है। प्राज विज्ञान भी इस बात को प्रमाणित करता है कि मूल रूप से किसी वस्तु का विनाश नहीं होता, किन्तु उसके पर्यायों में फेरफार होता रहता है।
जैनाचार्यों ने कहा है कि प्रत्येक पदार्थ में अनन्त शक्तियाँ मौजूद हैं, क्या आज वैज्ञानिक एक जड़ तत्व को लेकर ही अनेक चमत्कारपूर्ण चीजें नहीं दिखाते ? लोगों को वे अवश्य प्राश्चर्य में डालने वाली होती हैं, किन्तु जैनाचार्य तो यही कहेंगे कि-अभी क्या होता है, इस प्रकार की शक्तियों का समुद्र छिपा पड़ा है।
p. (a) It is interesting to note that the existence of microscopic organisms were also known to Jain Thinkers, who technically call them 'Sukshina Ekendriya Jivas' or minute organisms with the sense of touch alon-Prof. A Chakravarti.
- Jaina Antiquary Vol. IX P. ,5-15. बिना छाने जल का त्याग', खंड २।
२. रात्रि भोजन का त्याग, खंड २। .. . Turning to Biology, the Jain Thinkers were well acquainted with many important truths that the plant--world is also a living kingdom, which was denied by the scientists prior to the researchcs of Dr. J.C. Bosc. Prof.-AChakarvarti : Jaina Antiquary. Vol. IX P.5-15.
४. (i) उप्पत्तीवविरणासो दध्वस्स यं णस्थि अस्थि सब्भावो । . . विगमप्यादधृवत्त केति तरसेव पज्जावा ॥१॥
-यो कुन्दकुन्दाचार्य : प्रवचनसार । अर्थ-द्रव्य की न तो उत्पत्ति होती है और न उसका नाश होता है। यह तो सत्य स्वरूप है लेकिन इसकी पर्यायें इसके
उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य को करती हैं । (ii) Nothing is created & nothing is.destroyed. ५. 'भगवान महावीर का धर्म उपदेदा खण्ट २ के फुटनोट ।
6. The Jain works have dealt with matter, its qualities and functions on an elaborate scale. A student of Science. if reads the Jaina treatment of matter, will surprised to find many corresponding ideas. The indestructibility of matter, the conception of atoms and molecules and the view the hcat, lights and shade sound etc. are modifications of matter, are some of the notions that are common to the Jainism and Science,
-C. S. Mallinathan : Sarvartha Sidbhi (Intro) P. XVII.