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जैन धर्म हो सच्चा और आदि धर्म है
__मि आबे जे० ए. उवाई मियानरी निःसन्देह जैन धर्म ही पृथ्वी पर एक सच्चा धर्म है और यही मनुष्य मात्र का प्रादि धर्म है।
-डिस्क्रिप्सन आफ दो करैक्टर मैसर्ज एण्ड कस्टम्स आफ दी पीपल आफ इण्डिया ।
अलौकिक महापुरुष भगवान महावीर .
म. अनेस्ट लायमैन जर्मनी भगवान् महावीर अलौकिक महापुरुष थे । वे तपस्वियों में आदर्श, विचारकों में महान, पात्म-विकास में अग्रसर दर्शन- कार और उस समय की प्रचलित सभी विद्यानों में पारंगत थे। उन्होंने अपनी तपस्या के बल से उन-उन विद्याओं को रचनात्मक
रूप देकर जन समूह के समक्ष उपस्थित किया था । छः द्रव्य धर्मास्तिकाय (Fulcrum of Motion) अधर्मास्तिकाय (Fulcrun x.of Statiorariness) काल (Time) आकाश (Spacc) पुदगल (Matter) और जीव (Jive) ओर उनका स्वरूप तत्त्व रिया (Ortelks जिलापिया (Ksomology) दृश्य और अदृश्य जीवों का स्वरूप जीवन विद्या (Biology) बताया चैतन्य रूप प्रात्मा का उत्तरोत्तर आध्यात्मिक विकास स्वरूप मानस शास्त्र (Psychology) आदि विद्याओं को उन्होंने रचनास्मक रूप देकर जनता के सम्मुख उपस्थित किया। इस प्रकार वीरं केवल साधु अथवा तपस्वी ही नहीं थे बल्कि वे प्रकृति के "अभ्यासक थे और उन्होंने बिद्वतापूर्ण निर्णय दिया।
-भगवान महावीर का अादर्श जीवन पृष्ठ १३-१४ जैन धर्म की विशेषता
जर्मनी के महान विद्वान 370 जीन्ह सहर्टेल एम० ए० पी० एच० ० मैं अपने देशवासियों को दिखलाऊंगा कि केसे उत्तम तत्व पोर विचार जैन धर्म में हैं। जैन साहित्य बौद्धों की अपेक्षा बहत ही बढ़िया है। मैं जितना अधिक जैन धर्म व जैन साहित्य का ज्ञान प्राप्त करता जाता हूँ, उतना ही मैं उनका अधिक प्यार करता हूँ।
—जैन धर्म प्रकाश (सूरत) पृ० ब । भगवान महावीर के समय का भारत
प्रज्ञाचक्षु पं० गोविन्दराय जी काध्यतीर्थ भगवान महावीर के समय में भारतवर्ष कई स्वतन्त्र राज्यों में बंटा हुआ था जिनमें कुछ गणतन्त्र राज्य थे तो कुछ राजतन्त्र । एक भी ऐसा प्रबल सम्राट न था जिसकी छत्रछाया में समस्त भारत रहा हो । उस समय दक्षिण भारत का शासन वीर चूड़ामसि जीवन्धर करते थे जो अपने विद्यार्थी जीवन से ही जैनधर्म के अनुयायी और प्रचारक थे। इनके गुरु प्रार्यानन्दी भी जैनधर्मानुयायी थे जीवन्धर का समस्त जीवन-वृत्तान्त जैन साहित्य में वर्णित है।
मगध देश का शासन महाराजा श्रेणिक बिम्बसार के हाथों में था। जो कुमारावस्था में बौद्ध , परन्तु अपनी पटरानी चेलना के प्रभाव से जैनधर्मानुयायी हो गये थे । इनके दोनों पुत्र अभयकुमार और वारसियन जैन मुनि हो गये थे।
सिन्धुदेवा अर्थात् गंगापार में दो राज्य थे। एक राज्य की राजधानी वैशाली थी। वहां के स्वामी महाराजा चेटक थे, जो तेईसवें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ के तीर्थ के जैन साधुओं के प्रभाव से बड़े पक्के जैनी थे। उन्होंने यहां तक की प्रतिज्ञा कर
१. वीर देहली, १७ अप्रैल सन् १६४८ १०८।
२. 'महाराजा जीवधर पर वीर प्रभाव' खण्ड । ३-४. ऊपर का फुटनोट न०१। ५. 'महाराजा अंगिक और जैन धर्म' का खण्ड २ । ६. 'राजकुमार अभयकुमार पर वीर प्रभाव' खण्ड २१ ७. 'राजकुमार वारशियन पर वीर प्रभाव' खण्ड २।