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(६) नेमिचन्द्राचार्य के महाबीर चरिय (देखो, भारत के प्राचीन राजवंश भा०२१-४२) में भी महावीर स्वामी से ६०५ वर्ष ५ मास उपरान्त शक राजा का होना लिखा है।
यहाँ नं. १ और नं. ५ के प्रमाणों में बिल्कुल स्पष्ट रीति से वीर निर्वाण के ४७० वर्ष उपरान्त विक्रम का जन्म होना लिखा है । और यह ज्ञात ही है कि वीर निर्वाण ५२७ वर्ष पहले जो ईसा से माना जाता है यह वीर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद नप बिक्रम का सवत् राज्यारोहण मानने से उपलब्ध हुया है क्योंकि यह प्रमाणित है कि नप विक्रम का उनके १८ वर्ष को अबस्था में राज्यारोहण से प्रारम्भ होता है । इस अवस्था में स्वीकृत निर्माणकाल' में १८ वर्ष जोड़ना आवश्यक ठहरता है, क्योंकि उक्त गाथाओं में स्पष्ट रीति से वीर निर्माण से ४७० वर्ष बाद विक्रम का जन्म हुआ लिखा है। इस तरह पर प्रचलित वोर निर्वाण सम्बत् शुद्ध रूप में ईसा से पूर्व ५४५ वर्ष (५२७+ १८) मानना चाहिए। इस ही मत को श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवाल और प० विहारीलाल जी बुलन्दशहरो प्रमाणित बतलाते हैं। जैन दर्शन दिवाकर डा० जैकोबी भी इस मत को स्वीकार करते प्रतीत होते हैं, जैसा उनके उस पत्र से प्रकट है जो उन्होंने हमको लिखा था और जो बीर वर्ष २ पृष्ठ ७८-७६ में प्रकाशित हुया है। इसके साथ ही अन्य प्रमाणों में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। ऐसी अवस्था में यदि शक राजा का जन्म भी ६०५ वर्ष ५ महीने बाद वार निर्वाण से माना जाये तो कुछ असगतता नजर नहीं आती। इस दशा में वोर निर्वाण ईसा से पूर्व ५२७ वर्ष पहलं मानने का शुद्ध रूप २४५ वर्ष पहले मानना उचित प्रतीत होता है। वह निर्वाण काल हमारे उक्त पारस्परिक जावन सम्बन्ध से भो ठीक बैठ जाता है, क्योंकि सिंहलबौद्धों की मानता के अनुसार म० बुद्ध का परिनिवान ईसा से पूर्व ५४३ वर्ष में घटित हुआ था । बौद्धों की इस मान्यता को लेकर विशेष गवेपणा के साथ आधुनिक विद्वानों ने इसका शुद्ध रूप ईसा से पूर्व ४८७ बाँ वर्ष बतलाया है, किन्तु खण्डागार की हाथी गुफा से जो सम्राट खारवेल का शिलालेख मिला है उससे बौद्धों को उक्त मान्यता का पूरा समर्थन हाता है। इस दशा में भगवान महावीर का निर्वाण काल ईसा से पूर्व ५४५ वर्ष पूर्व मानने से और म० बुद्ध का परिनिध्वान ईसा से पहले ५४३ बे वर्ष में हुमा स्वीकार करने से हमारे उक्त जीवन सम्बन्ध निर्णय से प्रायः सामन्जस्य ही बैठ जाता है। क्योंकि स्वय दौद्धों के कथन से प्रमाणित है कि म. बुद्ध भगवान महावीर के पहले ही अपने को स्वयं बुद्ध मानकर उपदेश देने लगे थे। संयुक्त निकाय में (भाग ११-६८) में स्पष्ट कहा है कि बद्ध अपने को सम्भासंबद्ध कैसे कहने लगे जव निग्रन्थ नाथपुत्त अपने को वैसे ही नहीं कहते हैं। इससे स्पष्ट है कि हमारी पूर्वोक्त मान्यता के अनुसार म० वुद्ध भगवान महावीर के धर्मोपदेश देने के पहले ही उपदेश देने लगे थे और इस तरह पूर्वोल्लिखित पारस्परिक सम्बन्ध ठीक है। हाँ, एक दो वर्ष का अन्तर गणना की अद्धि के कारण रहा कहा जा सकता है। अतएव अाजकल भगवान महावीर का निर्वाण संवत् २४६६ वर्ष मानना विशेष युक्ति संगत है।
हिन्दी विश्वकोष के निम्न कथन से भी यही प्रमाणित है। वहाँ (भाग २ पृष्ठ ३५०) पर लिखा है कि तोत्थ. गलियययन्न' और 'तीर्थोद्वार प्रकीर्ण' नामक प्राचीन जन शास्त्र के मत से जिस रात को तीर्थकर महाबीर स्वामो ने सिद्धि पायी, उसी रात को पालक राजा अवन्ती के सिंहासन पर बैठे थे 1 पालकवंश ६०, उसके बाद नंदवंश १५५, मर्यवंश पूण मित्र ३० बलभित्र एवं भानुमित्र ६०, नरसेन नरवाहन ४०, गर्दभिल्ल १३ और शवराज ने ४ वर्ष राज्य किया। महावीर स्वामी के परिनिर्वाण से शकराज के अभ्युदयकाल पर्यन्त ४७० वर्ष बोते थे। इधर सरम्वनी गच्छ को पटावलो से देखते, कि विक्रम ने उक्त शकराज को हराया सही, किन्तु सोहल वर्ष तक राज्याभिषिक्त न हुए । उक्त सरस्वतो गच्छ की गाथामें स्पष्ट लिखा है-वीरात ४६२, बिक्रमजन्मान्त वर्ष २२, राज्यान्त वर्ष ४ अर्थात् गकराज के ४७० और विक्रमाभि काब्द के ४८८ अर्थात् सन् ई० से ५४५-४ वर्ष पहले महावीर स्वामी को मोक्ष मिला था। अतएव वही समय निर्वाण काल का ठीक जंचता है।
इस प्रकार म० बुद्ध और भगवान महावीर की जीवन घटनाओं का तुलनात्मक रीति से अध्ययन करने पर हमने उनकी पारस्परिक विभिन्नता को विल्कुल स्पष्ट कर दिया है और जब हम सुगमता से उनके भिन्न व्यक्तित्व एवं ममकालान सम्बन्धों के विषय में एक निश्चित मत स्थिर कर सकते हैं। इस विवेचन के पाठ से पाठकों को उस मिथ्या मान्यता को प्रसारता भी ज्ञात हो जायेगी जो इस उम्नलशील जमाने में भी कहीं-कहीं घर किये हुए है कि जैन धर्म की उत्पत्ति बौद्ध धर्म से हुई थी अथवा म० बुद्ध और भगवान महावीर एक व्यक्ति थे। .
यद्यपि यहाँ तक के विवेचन से हम मा बुद्ध और भगवान महावीर के पारस्परिक जीवन सम्बन्धों का दिग्दर्शन
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