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मुनियों का पता चलता है? [सं० २०१२ में कवि सुवानदास जी ने एक मुनि महेन्द्रकीतिजी का उल्लेख किया हैं। मुनि धर्मचन्द्र मुनि विश्वसेन मुनि श्री भूषण का भी इस समय पता चलता है सारांशतः यदि जैन साहित्य और मूर्ति लेखों का और भी परिशीलन और अध्ययन किया जाय तो प्रत्य अनेक मुनिगण का परिचय उस समय में मिलेगा ।
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आमरे में तब दिगम्बर मुनि
कविवर बनारसीदास जी बादशाह शाहजहां के कृपापात्रों में से थे। उनके सम्बन्ध में कहा जाता है कि एक बार जब कविवर श्रागरे में थे तब वहां पर दो नग्न मुनियों का आगमन हुआ । सब हो लोग उनके दर्शन बन्दना के लिए आते जाते थे । कविवर परीक्षा प्रधानी थे। उन्होंने उन मुनियों की परीक्षा की थी।' इस उल्लेख से उस समय आगरे में दिगम्बर मुनियों का निर्वाध विहार हुआ प्रकट है ।
फ्रेंच यात्री डा० बनियर और दिगम्बर साधु
विदेशी विद्वानों की साक्षी भी उक्त वक्तव्य की पोषक है। शाहजहां और रङ्गजेब के शासनकाल में फांस से एक यात्री डा० बनियर ( Dr. Bernier ) नामक आया था। वह सारे भारत में घूमा था और उसका समागम दिगम्बर मुनियों से भी हुआ था। उनके विषय में वह लिखता है कि :
"मुझे अक्सर साधारणतः किसी राजा के राज्य में, इन नंगे फकीरों के समूह मिले थे। जो देखने में भयानक थे। उसी दशा में मैंने उन्हें मादरजात नाना बड़े-बड़े शहरों में चलते फिरते देखा या मर्द, घोरत और लड़कियां उनको मोर से हो देखते थे जैसे की कोई साधू जन हमारे देश की गलियों में होकर निकलता है तब हम लोग देखते हैं। बरतें अक्सर उनके लिये बड़ी विनय से भिक्षा जातो थीं। उनका विश्वास था कि वे पवित्र पुरुष हैं और साधारण मनुष्यों से अधिक खोलवान बीए धर्मात्मा हैं ।" द्वारनिय बासिन्य विदेशियों ने भी उन दिगम्बर मुनियों को इस में देखा था। इस प्रकार इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि मुसलमान बादशाहों ने भारत की इस प्राचीन प्रथा, कि साधु नंगे रहें और नंगे हो सर्वत्र विहार करें, को सम्मानदृष्टि से देखा था। यहां तक कि कतिपय दिगम्बर जैनाचार्यो का उन्होंने खूब यादर सत्कार किया था। तत्कालीन हिन्दू कवि सुन्दर दास जी भी अपने 'सर्वागयोग' नामक ग्रंथ में इन मुनियों का उल्लेख निम्न शब्दों में करते हैं :
"केचित कर्म स्थापहि जैना, केश लुंचाइ करहिं यति फैना ।"
केशलुंचन क्रिया दिगम्बर मुनियों का एक खास भूलगुण है, यह लिखा ही जा चुका है। इससे तथा सं० १८७० में हुये कवि लालजीवन के निम्न उल्लेख से तत्कालीन दिगम्बर मुनियों का अपने मूलगुणों को पालन करने में पूर्णतः दशषित रहना प्रगट है :--
"धारे दिगम्बर रूप भूप सब पद को परसें हिय परम वैराग्य मोक्षनारम को दरसं ।
१. हि० १२ १६४ श्रीमच्छीकाष्ठासं चेमुलि गणगणनादिमवस्युष्टे ।"
२. " भट्टारक पद सभि जास-मुनि महेन्द्रकोत्ति पट तास ।"
३. श्री मूलसंधेयभारतीये गक्ष बलात्कार गतिरम्ये । ग्रामोन्सुदेवेन्द्रयशोमुनीन्द्रः समधारी मुनि धर्मचन्द्रः ।"
श्री काष्ठाय जिनसे तत्व भी मुनि
विद्याविभूयः मुनिरा वभूव श्रीभूषण वादि केन्द्रसिंहः ॥"
- उत्तरपुराण भाषा -श्रीविनसहभा
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पंचकल्याणक पाठ०
४. बवि०, चरित्र, पृ० ६७-१०२
. "I have often met, generally in the territory of some Raja, bands of these naked fakirs, hideous to behold. In this trim I have scen them, shamelessly welk stark naked, through a large town, men, women and girls looking at them without any more emotion than may be created when a hermit passes through our strects. Females would often bring them alms with much devotion, doubtless believing that they were holy personages, more chaste and discreet than other men." Bernier. p. 317
६. फाह्यान भूमिका