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इस प्रकार दक्षिण भारत में दिगम्बर मुनियों के अस्तित्व का चमत्कारिक वर्णन है और वह इस बात का प्रमाण है कि दक्षिण भारत एक अत्यन्त प्राचीन काल से दिगम्बर मुनियों का प्राश्रय स्थान रहा है तथा वह आगे भी रहेगा, इसमें संशय नहीं।
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तामिल-साहित्य में दिगम्बर मुनि "Among the systems controvered in the Manimekhalai, the Jain system also figures as one and the words Samanas and Amana are of frequent occurance; as also refrences to their Viharas so that from the earliest times reachable without present mcans, Jainism apparently flourished the Tamil Country":
तामिल साहित्य के मुख्य और प्राचीन लेखक दिगम्बर जैन विद्वान रहे हैं। और उसका सर्व प्राचीन व्याकरण-ग्रंथ "तोल्काप्पियम" (Tolkappiyam) एक जनाचार्य की ही रचना है। किन्तु हम यहां पर तामिल-साहित्य के जैनों द्वारा रचे हये अंग को नहीं छयेंगे। हमें तो नेत्तर तामिल साहित्य में दिगम्बर मुनियों के बर्णन को प्रकट करना इष्ट है।
___ अच्छा तो, तामिल-साहित्य का सर्वप्राचीन समय "संगम-काल" अर्थात् ईस्वी पूर्व दुसरी सताब्दी से ईस्वी पांचवी शताब्दी तक का समय है । इस काल को रचनाओं में बौद्ध विद्वान द्वारा रचित काव्य "मणि मेखल" प्रसिद्ध है "मणिमेखल" में दिगम्बर मनियों और उनके सिद्धान्तों तथा मठों का अच्छा खासा वर्णन है । जैन दर्शन को इस काव्य में दो भागों में विभक्त किया है—(१) आजीविक और (२) निन्थ ३ माजीविका भ० महावीर के समय में एक स्वतन्त्र सम्प्रदाय था, किन्तु उपरान्तकाल में वह दिगम्बर जैन सम्प्रदाय में समाविष्ट हो गया था। निग्रंथ सम्प्रदायको 'अरुहन' (अहत) का अनुयायी लिखा है जो जैनों का द्योतक है। इस काव्य के पात्रों में सेठ कोवलन की पत्नी कण्णकि के पिता मानाइकन के विषय में लिखा है कि 'जब उसने अपने दामाद के मारे जाने के समाचार सुने तो उसे अत्यन्त दुख और खेद हुया । और वह जैन संघ में नंगा मुनि हो गया। इस कान्य से यह भी प्रगट है कि चोल और पाण्ड्य राजाओं ने जैन धर्म को अपनाया था।
मणिमेखल" के वर्णन से प्रकट है कि "निम्रन्थगण ग्रामों के बाहर शीतल मठों में रहते थे। इन मठों की दीवाले बहत ऊंची और लाल रंग से रंगी हुई होती थीं। प्रत्येक मठ के साथ एक छोटा सा बगीचा भी होता था। उसके मन्दिर तिराहों और चौराहों पर अवस्थित थे। जैनों ने अपने प्लेटफार्म भी बना रक्खे थे, जिन पर से निग्रन्थाचार्य अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते
जैन साधनों के मठों के साथ २ जैन साध्वीयों के आश्राम भी होते थे । जैन साध्वीयों का प्रभाव तामिल महिला समाज पर विशेष था। कावेरीप्यूमपट्टिनम् जो चोल राजाओं की राजधानी थी, वहां और कावेरी तट पर स्थित उदपुर में जनों के मठ थे मदरा जैन धर्म का मुख्य केन्द्र था । सेठ कोवलन् और उनकी पत्नी कण्णकि जब मदुरा को जा रहे थे तो रास्ते में एक जैन शायिका ने उन्हें किसी जीव को पीड़ा न पहुंचाने के लिए सावधान किया था, क्योंकि मदुरा में निग्रन्थों द्वारा यह एक महान पाप करार दिया गया था। यह निम्रन्थगण तीन छत्रयुक्त और अशोक वृक्ष के तले बैठाये गये । अत् भगवान् की देवीप्यमान मति को विमय करते थे। यह सब जैन दिगम्बर थे, यह उक्त काव्य के वर्णन से स्पष्ट है। पुहर में जब इन्द्रोत्सव मनाया गया तब वहां के राजा ने सब धर्मों के प्राचार्या को बाद और धर्मोपदेश करने के लिए बुलाया था। दिगम्बर मुनि इस अवसर पर
B.Sc. p.32 भावार्थ-तागिल काव्य 'मणिभखने में जंग-संप्रदाय और शब्द "ममण"-"श्रमण" तथा उनके विहारों का उल्लेख्न विशेष है, जिससे सामिल देश में अतीव प्राचीनकाल से जनघमं का अस्तित्व सिद्ध है।" २. SSIJ., Pt I. P. 89
३. BS., P. 15 ४. I bid., P., 681
५. SSIj., Pt. 1. P.47
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