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दिगंबर प्रधान थे।"१
संस्कृत साहित्य के उपरोक्त उल्लेखों से दिगंबर मनियों के अस्तित्व और उनके निवांध विहार और धर्म प्रचार करने का समर्थन होता है।
दक्षिण भारत में दिगंबर जैन मुनि । "सरसा पयसा रिक्तेनाति तुच्छजलेन च । जिनजन्मादिकल्याणक्षेत्र तीर्थत्वमाथिते ।।३० नाशमेष्यति सद्धर्मो मारवीर मदच्छिदः । स्थास्यतीह क्वचित्ताते विषये दक्षिणादि के ॥४१॥"
–थी भद्रबाहुचरित्र। विगंबर जैन धर्म दक्षिण भारत में रहना निश्चित है। दिगंबर जैनाचार्य, राजा चन्द्रगुप्त ने जो स्वप्न देखा उसका फल बताते हुये कह गये हैं कि "जलरहित तथा कहीं थोड़े जल से भरे हुये सरोवर के देखने से यह सच जानो कि जहाँ तीर्थकर भगवान के कल्याणादि हुये हैं ऐसे तीर्थ स्थानों में कामदेव के मद का छेदन करने वाला उत्तम जिन धर्म नाश को प्राप्त होगा तथा कहीं दक्षिणादि देश में कुछ रहेगा भी !" और दिगंबराचार्य की यह भविष्यवाणी करीब-करीब ठीक ही उतरी है। जबकि उत्तर भारत में कभी दिगम्बर मुनियों का अभाव भी हमा, तब दक्षिण भारत में आज तक बराबर दिगंबर मनि होते आये हैं । पौर दिगंबर जैनों के श्री कुन्दकुदादि बड़े-बड़े आचार्य दक्षिण भारत में ही हुये हैं । अतः दक्षिण भारत को दिगंबर मुनियों का गढ़ कहना बेजा नहीं है।
ऋषभदेव और दक्षिण भारत अच्छा तो यह देखिये कि दक्षिण भारत में दिगंबर मुनियों का सद्भाव किस जमाने से हुया है ? जन शास्त्र बतलाते हैं कि इस कल्प काल में कर्मभूमि की आदि में श्री ऋषभदेव जी ने सर्वप्रथम धर्म का निरूपण किया था और उनके पुत्र बाहवलि दक्षिण भारत के शासनाधिकारी थे। पोदनपुर उनकी राजधानी थी। भगवान ऋषभदेव हो सर्वप्रथम वहां धर्मोपदेश देते हुये पहुंचे थे। वह दिगंबर मुनि थे, यह पहले ही लिखा जा चुका है। उनके समय में ही बाहुबलि भी राजपाट छोड़कर दिगंबर मनि हो गये थे। इन दिगंबर मुनि की विशालकाय नग्नमतियां दक्षिण भारत में अनेक स्थानों पर आज भी मौजूद हैं। श्रवण वेलगोल में स्थिति मूर्ति ५७ फीट ऊंची प्रति मनोज्ञ है; जिसके दर्शन करने देश-विदेश के यात्री पाते हैं । कारकलवे नर आदि स्थानों में भी ऐसी ही मूर्तियां हैं। दक्षिण भारत में बाहुबलि मनिराज की विशेष मान्यता है।'
१. (Goladhyaya 3, Verses 8-10)--The naked sectarians and the rest affirm that two suns two moons and two sets of stars appeas alternately; against them I allcge this reasoning. How absurd is the notion which you have formed of duplicate suns, moons, and stars, when you see the revolution of the polar fish (Ursa Minor).' The commentator Lakshamidas agree that the Jainas are here meant **& remarks that they are described as 'naked sectarians' etc. because the class of Digambaras is a principal one among these people."
-AR,, Vol. IX. p.317. २२, भन्न, पृ० ३३ ३. आदिपुराण ४. जैनिसं०, भूमिका पृ. १७-३२