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इस प्रकार कलिंग में दिगम्बर जैनधर्म का बाहुल्य एक प्रतीव प्राचीनकाल से रहा है और वहां पर आजभी सराकलोग एक बड़ी संख्या में हैं, जो प्राचीन श्रावक हैं। उनका अस्तित्व इस बात का प्रमाण है कि कलिंग में जैनत्व की प्रधानता आधुनिक समय तक विद्यमान् रही थी।
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गुप्त साम्राज्य में विगम्बर-मुनि ! -The capital of the Gupta emperors became the centre of Brahmanical culture, but the masses followed the religious traditions of their forefathers, and Buddhist aud Jain monasteries continued to public schools and universities for the greater part of India."
-E.B. Havell. HARI., p. 156. यद्यपि गुप्तवंश के राज्यकाल में ब्राह्मण धर्म की उन्नति हुई थी, किन्तु जन-साधारण में अब भी जैन और बौद्ध धर्म का ही प्रचार था। दिगम्बर जैन मुनिगण ग्राम-ग्राम विहार कर जनता का कल्याण कर रहे थे और दिगम्बर उपाध्याय जैन विद्यापीठों के द्वारा ज्ञान दान करते थे। गुप्त काल में मथुरा, उज्जैन, राजगह आदि स्थान जैन धर्म के केन्द्र थे। इन स्थानों पर दिगम्बर जैन साधुनों के संघ विद्यमान थे। गुप्त-सम्राट् अब्राह्मण साधुओं से द्वेष नहीं रखते थे। तथापि उनका वाद ब्राह्मण विद्वानों के साथ कराकर सुनना उन्हें पसन्द था।
श्री सिद्धसेनदिवाकर के उदगारों से पता चलता है कि "उस समय सरलवाद पद्धति और भाकर्षक शान्तिवति का लोगों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता था । निम्रन्थ अकेले-दुकेले ही ऐसे स्थलों पर जा पहुंचते थे और ब्राह्मणादि प्रतिवादी विस्तृत शिष्य समूह और जनसमुदाय सहित राजसी ठाठ-बाठ के साथ पेश पाते थे, तो भी जो यश निर्ग्रन्थों को मिलता था वह उन प्रतिवादियों को अप्राप्य था।"
बंगाल में पहाड़पुर नामक स्थान दिगम्बर जैन संघ का केन्द्र था । वहाँ के दिगम्बर मुनि प्रसिद्ध थे।
गूप्तवंश में चन्द्रगुप्त द्वितीय प्रतापी राजा था । उसने 'विक्रमादित्य, की उपाधि धारण की थी। विद्वानों का कथन है कि उसी की राज-सभा में निम्नलिखित विद्वान थे :--
धन्वन्तरिः क्षपणकोऽमरसिंहशंकुतालभट्टघटखपरकालिदासाः। ख्यातो वराहमिहिरो भूपतेः सभायां रत्नानि वै वररुचिर्नध विक्रमस्य ।।"
इन विद्वानों में क्षपणक' नामक विद्वान् एक दिगम्बर मुनि था । आधुनिक विद्वान् उन्हें सिद्धसेन नामक दिगम्बर जैनाचार्य प्रकट करते हैं । जैनशास्त्र भी उनका समर्थन करते हैं । उनसे प्रकट है कि श्री सिद्धसेन ने 'महाकाली के मन्दिर में चमत्कार दिखाकर चन्द्रगुप्त को जैनधर्म में दीक्षित कर लिया था।
उपरोक्त विद्वानों में से अमरसिंह, वराहमिहिर आदि ने अपनी रचनाओं में जैनों का उल्लेख किया है, उससे भी
१. बंबिओ जस्मा. १०१-१४० २. भाई., पृष्ठ ६१। ३. जहि. भा. १४ पृष्ठ १५६ ४. IHQ VII 441 ५, रा. १३३ । ६. रथा. चरित्र पृष्ठ १३३-१४११ ७. वीर, वर्ष १ पृष्ठ ४७१ ८. अमरकोष देखो . ६. 'नग्नान् जिनाना विदुः । -वराहमिहिर संहिता
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