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गलियों में फिरता था । अध्यात्मवाद का प्रचारक था। घूमता-घामता वह दिल्ली जा इटा। शाहजहां का यह अन्त समय था । दारा शिकोह, शाहजहां बादशाह का बड़ा लड़का उसका भक्त हो गया। सरमद अानन्द से अपने मत का प्रचार दिल्ली में करता रहा । उस समय फ्रान्स से आये हुए डा० बरनियर ने खुद अपनी प्रांखों से उसे नंगा दिल्ली को गलियों में घूमते देखा था । किन्तु जव शाहजहां और दारा को मार कर औरंगजेब बादशाह हुआ तो सरमद की आजादो में भी अडंगा पड़ गया। एक मुल्ला ने उसकी नग्नता के अपराध में उसे फांसी पर चढ़ाने की सलाह औरङ्गजेब को दी; किन्तु औरंगजेब ने नग्नता को इस दण्ड की वस्तु न समझा और सरमद से कपड़े पहनने की दरख्वास्त की। इसके उत्तर में सरमद ने कहा
"आँकस कि तुरा कुलाह सुल्तानी दाद, मारा हम ओ अस्बाब परेशानी दाद; पोशानीद लबास हरकरा ऐबे दीद, वे ऐबा रा लबास अर्यानी दाद !"
यानी जिस ने तुम को बादशाही ताज दिया, उसी ने हम को परेशानी का सामान दिया । जिस किसी में कोई ऐब पाया, उसको लिबास पहनाया और जिन में ऐबन पाये उन को नगेपन का लिबास दिया।"
बादशाह इस रुबाई को सुनकर चुप हो गया, लेकिन सरमद उसके क्रोध से बच न पाया । अब के सरमद फिर अपराधी बनाकर लाया गया । अपराध सिर्फ यह था कि वह 'कलमा आधा पढ़ता है जिस के माने होते हैं कि 'कोई खदा नहीं है। इस अपराध का दण्ड उसे फांसी मिली और वह बेदान्त की बात करता हुआ शहीद हो गया। उसको फांसी दिये जाने में एक कारण यह भी था कि वह दारा का दोस्त था-" |
सरमद की तरह न जाने कितने नो मुसलमान दरवेश हो गुजरे हैं 1 बादशाह ने उसे मात्र नंगे रहने के कारण सजा न दी, यह इस बात का द्यातक है कि वह नग्नता का बुरा चीज नहीं समझता था। और सचमुच उस समय भारत में हजारों नंगे फकीर थे । ये दरवेश अपने नंगे तन में भारी र जंजीरे लपेट कर बड़े लम्बे २ तीर्थाटन किया करते थे।५
सारांशतः इस्लाम मजहब में दिगम्बरत्व साधुपद का चिन्ह रहा है और उसको अमली शक्ल भी हजारों मुसलमानों ने दी है। और चंकी हजरत मुहम्मद किसी नये सिद्धान्त के प्रचार का दावा नहीं करते, इसलिए कहना होगा कि ऋषभाचल से प्रगट हुई दिगम्बरवा-गंगा को एक धारा को इस्लाम के सूफ़ी दरवेशों ने भी अपना लिया था।
.. - - - --- - -- - - & Bernier renjarks: "I was for a long time disgusted with a celebrated Fakire named Sormet, who paraded the streets of Delhi as naked as when he came into the world etc." (Berniers Travels in the Mogul Empire, P317) R.Emperor told the Ulema that "Mere sudity cannot be a reason of execution."
.. IGXX., P. 158. ३. जमा १०४
JG., Vol. XX, P. 159. "There is no God" said Sarmad omitting "but, Allah and muhammad is His apostle."
५. "Among the vast number and endless Variety of Faires of Dervishes...Some carried a club like to Hercules, others had a dry and rougb tiger...skin thrown over their shoulders... Several of these fakires take long pilgrimages, such as are put about the legs of elepliants."
-Bernier, P. 317.
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