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fanatics and pay them the utmost respect, as persons endowed with extraordinary sanctity. No fury in the interoal regions can be conceiveu more horrible than the Jaugise with their naked and black skin, long hair, spindle arms, long twisted nails and fixed in the posture which 1 have mentioned."
भाव यही है कि बहुत से ऐसे जोगो थे जो तालाब अथवा मंदिरों में नंगे रात-दिन रहते थे। उनके बाल लम्बे-लम्बे थे। उनमें से कोई अपनी बाहें ऊपर को उठाये रहते थे । नाखून उनके मुड़कर दूभर हो गये थे जो मेरी छोटो अंगुली के प्राधे के बराबर थे। सूखकर वे लकड़ी हो गये थे। उन्हें खिलाना भी मुश्किल था; क्योंकि उनकी नस तन गई थीं। भक्तजन इन भागों की सेवा करते हैं और इनकी बड़ी विनय करते हैं। वे इन जोगियों से पवित्र किसी दूसरे को नहीं समझते और इनके क्रोध से बेढब डरते हैं । इन जोगियों की नंगी और काली चमड़ी है, लम्बे बाल हैं, सूखी बाहें, लम्बे मुड़े हुए नाखून हैं और वे एक जगह पर ही उस ग्रासन में जमे रहते हैं जिसका मैंने उस्लेख किया है। यह हठयोग की पराकाष्ठा है । परमहंस होकर वह यह न करते तो करते भी क्या ?
सन १६२३ ई० में पिटर डेल्ला वाल्ला नामक एक यात्री ग्राया था। उसने अहमदाबाद में साबरमती नदी के किनारे और शिवालों में अनेक नागा साधु देख थे; जिनकी लोग बड़ी विनय करते थे।
प्राज भी प्रयाग में कुम्भ के मेले के अवसर पर हजारों नागा सन्यासी यहां देखने को मिलते हैं-वे कतार बांध कर शरह-ग्राम नंगे निकलते हैं।
- इस प्रकार हिन्दू शास्त्रों और यात्रियों की साक्षियों से हिन्दू धर्म में दिगम्बरत्व का महत्व स्पष्ट हो जाता है। निगम्बर साधू हिन्दयों के लिये भी पूज्य-पुरुष हैं।
इस्लाम और दिगम्बरत्व
"I am no apostle of new doctrines", said Muhammad, "neither know I what will be done with me or you."
-Koran XLVI पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने खुद फरमाया है कि "मैं किन्हीं नये सिद्धान्तों का उपदेशक नहीं हूं और मुझे यह नहीं मालम कि मेरे या तुम्हारे साथ क्या होगा? "सत्य का उपासक और कह ही क्या सकता है ? उसे तो सत्य को गुमराह भाइयों तक पहुंचाना है और उससे जैसे बनता है वैसे इस कार्य को करना पड़ता है। मुहम्मद सा० को अरब के असभ्य से लोगों में सत्य का प्रकाश फैलाना था। वह लोग ऐसे पात्र न थे कि एकदम ऊंचे दर्जे का सिद्धान्त उन को सिखाया जाता। उस पर भी हजरत मुहम्मद ने उनको स्पष्ट शिक्षा दो कि
"The love of the world is the root of all evil."
The world is as a prison and as a famine to Muslims, and when they leave it you may say they leave famine and a prison"-(Sayings of Mohammad)
अर्थात-"संसार का प्रमही सारे पाप की जड़ है। संसार मुसलमान के लिए एक कैदखाना और कहत के समान है और जब वे इसको छोड़ देते हैं तब तुम कह सकते हो कि उन्होंने कहत और कैदखाने को छोड़ दिया।" त्याग गौर वैराग्य का इससे बढ़िया उपदेश और हो भी क्या सकता है ? हजरत मुहम्मद ने स्वयं उसके अनुसार अपना जीवन बनाने का यथासंभव प्रयत्न किया था। उस पर भी उनके कम से कम वस्त्रों का परिधान और हाथ को अंगूठी उनकी नमाज में बाधक हुई थी। - - - --- -
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- १. पुरातत्व, वर्ष २ अंक ४ पु. ४४० २. KK., P. 738 ३. Religious Attitude and life in Islam, P.298 and KK.739