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कपरदनादि ईधन के द्वारा उनके शरीर को भस्म किया, मोक्ष-कल्याणक का उत्सव सम्पन्न किया और माथे पर भस्म का लेगन किया। इस प्रकार वे बार-बार नमस्कार कर अपने-अपने स्थान को चले गये।
दस पार गौमा स्वामी केयमितौर मारभूति दोनों भाई पांच सौ ब्राह्मणों के साथ तपश्चरण करने लगे । दोनों भ्रातानों ने घातिया कर्मों का नाश कर अनेक भव्य जीवों को धर्मोपदेश दिया और अन्त में समस्त कर्मा को विनष्ट कर मोक्ष प्राप्त किया। उन पांच सौ ब्राह्मणों में से अनेक सर्वार्थ सिद्धि में और अनेक स्वर्ग में उत्पन्न हुए सत्य है, तपश्चरण के द्वारा राव कुछ संभव है।
गौतम गणधर स्वामी के गुणों का वर्णन करना जब वहस्पति के लिए भी संभव नहीं तब भला मैं अल्पज्ञानी उनके गणों का वर्णन कैसे कर सकता हूं। जिनके धर्मोपदेश को श्रवण कर अनेक भव्य जीव मोक्षगामी हए और आगे भी होते रहेंगे, उन्हें मैं बार-बार नमस्कार करता हूं। गौतम स्वामी की स्तुति कर्मों को नष्ट करने तथा अनन्त सुख प्रदान करने वाली है। वह मोक्ष प्राप्ति में सहायक हो।
गौतम स्वामी का जीव प्रथम विशालाक्षो माम्नी रानी के पर्याय में था, पुन: नरकगामी हया । वहां से निकल कर विलाव, शकर, कृत्ता, मुर्गा और पुनः शुद्र कन्या के रूप में हुआ। उसने व्रत के प्रभाव से स्वर्ग में देवत्व की प्राप्ति की वहां से पाकर ब्राह्मण का पुत्र गौतम हुमा और उनके पांच सौ शिष्य हुए। सत्य है, धर्म के प्रभाव से क्या नहीं होता है।
वान महावीर स्वामी के समोशरण में मनस्तंभ को देखकर गौतम का सारा अभिमान चूर हो गया। उसने भगवान के सीप जिनदीक्षा ग्रहण कर ली । अन्त में बे समस्त परिग्रहों को त्याग कर महावीर स्वामी के प्रथम गणधर हए। उन्होंने संताप नाशक भव्यजीवों को सूत्र प्रदान करने वाली धर्म की वृष्टि की अर्थात धर्मोपदेश दिया। जिन्हें इन्द्र, नरेन्द्र नमस्कार
को उन्हें मैं हृदय से नमस्कार करता हूं। जिन्होंने कर्मरूपी शत्रुओं को विनष्ट कर केवल ज्ञान प्राप्त किया। अपनी दिव्य बाकेदारा जिन्होंने राजाओं और मनुष्यों को धर्मोपदेश दिया, जो चैतन्य अवस्था धारण कर मोक्षगामी हए, वे श्री गौतम स्वामी जीवों के अनुकल स्थायी मोक्ष-सुख प्रदान करें। जिनेन्द्र देव को वाणी से प्रकट हुआ जैन धर्म, सर्वोत्तम पद प्रदान करने शाला के रूप तेज वृद्धि देने वाला है तथा सर्वोत्तम विभूतियां-भोगोपभोग की सामग्रियां तथा स्वर्ग मोक्षादि की प्राप्ति करने घाला है, अतएव भव्य जीवों को चाहिए कि वे जैनधर्म को धारण करें।
समस्त पापों को नाश करने वाले श्री नेमिचन्द मेरे इस गच्छ के स्वामी हुए। ये यश कीति अत्यन्त ख्यातनामा हए। अनेक भक्ष्यजन और राजा उनकी सेवा करते थे। उनके पट्ट पर श्री भानुकीति विराजित हुए। वे सिद्धान्त शास्त्र के पारंगत, काम-विजयी प्रबल प्रतापी और शांत थे। उन्होंने क्रोध, मान, माया, लोभ आदि कषायों पर विजय प्राप्त की थी। उनके पटट पर, न्यायाध्यात्मा पुराण, कोष छन्द अलंकार प्रादि अनेक शास्त्रों के ज्ञाता श्रीभूषण मुनिराज विराजमान हए। वे प्राचार्यों के सम्प्रदाय में प्रधान थे। उनके पट्ट पर श्री धर्मचन्द मुनिराज विराजे । वे भारती गच्छ के देदीप्यमान सूर्य थे। महाराज रघनाथ के राज्य में महाराष्ट्र नाम का एक छोटा-सा नगर था। वहां ऋषभ देव का एक जिनालय है, जो पूजा पाठ आदि महोत्सव से सदा सुशोभित रहता है। उसी जिनालय में बैठ कर विक्रम सम्बत् १७२६ की ज्येष्ठ शक्ला द्वितीया के दिनछाक के दाभ स्थान में रहते हुए, अनेक प्राचार्यों के अधिपति श्री धर्मचन्द्र मुनिराज ने भक्ति के वश हो गौतम स्वामी के शुभ चरित्र की रचना की। हमारी यही भावना है कि इस चरित्र के द्वारा भव्य प्राणियों का सदा कल्याण होता रहे।
गौतम स्वामी मोक्ष कहां से गये? ऐसा प्रश्न उठता है। इसके बारे में श्री गुणभद्राचार्य अपने उत्तर पुराण में लिखते हैं किगौतम स्वामी उपदेश देते हुए कहते हैं कि
भविष्याम्यहमप्यश्च केवलज्ञान लोचनः । भव्यानां धर्मदेशेन विहुत्य विषयांस्ततः ।।५१६।। गत्वा बिपूलादिगिरी प्राप्स्यामि निवति । मन्निवृत्तिदिने लब्ध्वा सुधर्मा क्षतपारगः ।।५१७॥
–महापुराण पेज नं०७४५-४६ जिस दिन भगवान महावीर मोक्ष पधारेंगे उसी दिन मुझे भी घातिया कर्मों के नाश होने से केवल ज्ञानरूपी नेत्र प्रगट होगा 1 भव्य जीवों को धर्मोपदेश देता हुमा अनेक देशों में विहार करूंगा और फिर विपुलाचल पर्वत पर जाकर मुक्त होऊंगा। जिस दिन मैं मुक्त होऊंगा उसी दिन सकल धुतज्ञान के पारगामी सुधर्माचार्य को लोक अलोक सबको एक साथ देखने बाला अंतिम केवल ज्ञान प्रगट होगा सुधर्माचार्य के निर्वाण होने के समय हो जम्बूकुमार को केवल ज्ञान प्रगट होगा। इस पागम से यह बात सिद्ध हई कि गौतम स्वामी राजग्रह अर्थात् विपुलाचल पर्वत से मुक्त हुए हैं और कोई अन्य स्थान से नहीं है।
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