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भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र काल, महाकाल, उर्मुख नरमुख, उन्मुख, ये नो नाम नारकियों के हैं। इनकी आयु भी नारायणों की भांति कही गयी है।
बाहुबली, अमितते ज, श्रीधर, दशभद्र, प्रसेनजित, चन्द्रवर्ण, अग्निमुक्त, सनतबमार, वत्सराज, कनकप्रभ, मेघवर्ण, शांतिनाथ, कंधनाथ, अरहनाथ, विजयराज, श्रीचन्द्र, नलराजा, हनुमन्त, बलराजा, वसुदेव, पदम, नागकुमार, श्रीपाल, जंबु स्वामी ये चौबीस कामदेवों के नाम है। चौबीस तीर्थकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ प्रति नारायण, नौ बलभद्र तिरसठ शलाका पुरुष तथा चौवीस कामदेव नीनारद, चौबीस तीर्थकरों की माताएं चौदह कुलकर ग्यारह रुद्र ये एक सौ उनत्तर महापुरुष कहलाते हैं। इन में ये कितने ही धर्म के प्रभाव से मोक्षगामी हुए और आगे होंगे। राजन् ! यह बात सर्वथा सत्य है । अंणिक ! यह तो दुषमसुषम कालका स्वरूप बतलाया, अब दुषम कालका स्वरूप कहता हूं. सुन । जब वर्द्धमान स्वामी मोक्ष पधारेंगे उस समय, सुरेन्द्र, नागेन्द्र, नरेन्द्र सब उनका कल्याणोत्सव सम्पन्न करेंगे। उस काल में धर्म की प्रवति होती रहेगी। किन्तु जब केवली भगवान का धर्मोपदेश बन्द हो जायगा, तब उससमय के मनुष्य दुष्ट और अधर्मरत होंगे। वे कर तथा प्रजा को कष्ट देने वाले होंगे। उनका हृदय सम्यग्दर्शन से शुन्य होगा, हिंसा रत होंगे, झूठ बोलेगे एवं ब्रह्मचर्य से सर्वथा रहित होंगे। वे क्रोधी, मायाचारी, परस्त्री लोलुपी, परोपकार से रहित और जैन धर्म के कट्टर विरोधी होंगे। मांस, मद्य, मधु का सेवन करने बाले बिवादी इष्ट वियोगी अनिष्ट संयोगी और कुबुद्धि धारण करने वाले होंगे । उस समय उनके पाप कर्मों के उदय से सदा युद्ध होते रहेंगे । धान्य कम होगा और यज्ञों में गोवध करने वाले पतित दूसरों को भी पतित करते रहेंगे । पंचमकाल के प्रारम्भ में मनुष्य की ऊंचाई सात हाथ की होगी, पर घटते-२ वह दो हाथ की तरह जायगी। भारम्भ के मनुष्यों की आयु एक सौ चौबीस वर्ष की होगी पर वह भी अन्त में बीस वर्ष की हो जायगो। सुषम-दुषमकाल में शरीर की ऊचाई एक हाथ की होगी और प्राय केवल बारह वर्ग की रह जायेगी, ऐसा जिनेन्द्र भगवान ने कहा है। उस काल के लोग सर्ववृत्ति धारण कर अनेक कुकर्म करेंगे। बे सर्वथा धनहीन और स्थानहीन होंगे। उनमें प्राचरण की प्रवृत्ति नहीं रहेगी और पशुओं की तरह गुफानों में रह कर जीवन व्यतीत करेंगे। अर्थ, धर्म, काम औरमोक्ष की प्रवृत्ति उनमें नहीं रहेगी। वे बनस्पति मादि खाकर जीवन-निर्वाह करेंगे। इसके अतिरिक्त वे विवाह संस्कार से भी रहित होंगे । अंग से कुरूप होंमे । जिस तरह से कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा का प्रकाश कम होता जाता है और शुक्ल पक्ष में उसको अभिवृद्धि होती है, उसी प्रकार अवसर्पिणी और उत्सपिणीकाल में मनुष्य की आयु शरीर प्रभाव ऐश्वर्य आदि में घटी-बढ़ी होती रहेगी।
राजन् ! मुनि और धावकों के भेद से दो प्रकार का धर्म बतलाया गया है ; इनमें मुनियों का धर्म मोक्ष प्राप्त करने वाला है और श्रावकों के धर्म से स्वर्ग की प्राप्ति होती है। दोनों का स्वरूप बतला चुके हैं। अब नरक स्वर्ग का हाल बतलाते हैं। जीव को पापकर्म के उदय से नरक में जाना पड़ता है। वहां यह जीव नाना तरह के दुःख भोगता है । अधोलोक में सात नरक हैं। उसके नाम ये हैं-घर्मा, वंशा, मेघा, अंजना, अरिष्टा, मधवी, माधवी इनमें चौरासीलाख बिलं कम से हैं। पहली पृथ्वी में तीस लाख दूसरी में पच्चीस लाख, तीसरी में पंद्रह लाख, चौथी में दश लाख पांचवी में तीन लाख, छठी में पांच कम एक लाख और सातवें में पांच । पहली में नारकी जीवों के जघन्य कापोतलेश्या दुसरी में मध्यम कापोतलेश्या और तीसरी पृथ्वी के ऊपरी भाग में उत्कृष्ट कापोतलेश्या है और उसी तीसरी के प्राधे भाग में जघन्य नीललेश्या चौथी के माध्यम नील लेश्या है। पांचवी पृथ्वी के ऊर्च भाग में उत्कृष्ट और उसी पांचवों के निम्न भाग में जघन्य कृष्ण लेश्या है छठी पृथ्वी के ऊर्ध्व में नारको जीवों की मध्यम कृष्ण लेश्या और निम्न भाग में परम कृष्ण है और सातवीं पृथ्वी के नारकीयों की उत्कृष्ट कृष्ण लेश्या है । इन नारकीयों की प्रायु आठ प्रकार की होती है
प्रथम नरक में एक सागर की दूसरे में तीन सागर की, तीसरे में सात सागर की, चौथे में दश सागर की, पांच में सत्रह सागर की छठवे में वाइस सागर की और सातवें नरक में तैतीस सागर की उत्कृष्ट प्रायु है । पहले में दश हजार वर्ष की जघन्य प्रायु, दूसरे में एक सागर, तीसरे में तीन सागर, चौथे में सात सागर पाचवं में दश सागर, छठवें में सत्रह सागर और सातव में वाईस सागर की जघन्य प्रायु होती है । उनके शरीर की ऊंचाई सातवें नरक में पांच सौ धनुष की होती है और क्रम से अन्य नरकों में आधी होती गयी है । प्रथम नरक में रहने वाले नारकियों का अवधिज्ञान एक योजन तक रहता है, पर क्रम से आधा घटता जाता हैं। अब इसके आगे देवों का वर्णन करते हैं--भवनवासी, व्यन्तर ज्योतिष्क और कल्पवासी चार प्रकार के देव होते हैं। भवनवासियों के दश भेद व्यन्तरों के पाठ भेद, ज्योतिष्कों के पांच भेद तथा कल्पवासियों के बारह भेद होते हैं। कल्पातीत देवों में किसी प्रकार का भेद नहीं है । असुर कुमार, नागकुमार सुपर्ण कुमार, द्वीप कुमार, अग्निकुमार, स्तमित कुमार, उदधि कुमार, दिककुमार विद्युत्कुमार और बातकुमार ये भवनवासियों