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गौतम चरित्र
अर्हन्तं नोम्यहं नित्यं मुक्ति लक्ष्मीप्रदायकम् । विबुधनरनागेन्द्रसेव्यमानम्पदाम्बुजम् ॥
जो अरहन्त भगवान मोक्षरूपी सम्पदा प्रदान करने वाले हैं, जिनके पादपद्मों की सेवा नर-नागेन्द्रादि सभी किया करते हैं, उन्हें मैं सर्वदा नमस्कार करता हूं | जो सिद्ध भगवान कर्मरूपी शत्रुओं के संहाकर हैं, सम्यक्त्व यादि भ्रष्टगुणों से सुशोभित हैं तथा जो लोक शिखर पर स्थित हो सदा मुक्त अवस्था में रहते हैं, ऐसे सिद्ध परमेष्ठी भगवान हमारे समस्त कार्यों की सिद्धि करें। जिनेन्द्रदेव महावीर स्वामी, महावीर वीर और मोक्षदाता हैं एवं महावीर वर्द्धमान वीर सन्मति जिनके शुभ नाम हैं, उन्हें मैं नमस्कार करता हूं। जो इच्छित फल प्रदान करने वाले हैं, जो मोहरूपी महाशत्रुओं के संहारक हैं और मुक्ति रूपी सुन्दरी के पति हैं, ऐसे महावीर स्वामी हमें सद्बुद्धि प्रदान करें। भगवान जिनेन्द्र देव से प्रकट होने वाली सरस्वती, जो भव्यरूपी कमलों को विकसित करती है, वह सूर्य की ज्योति की भांति जगत के ज्ञानान्सकार को दूर करे। श्री सर्वज्ञ देव के मुख से प्रकट हुई वह सरस्वती देवी सरल कामधेनु के समान अपने सेवकों का हित करने वाली होती है, श्रतः वह देवी हमारी इच्छा के अनुसार कार्यों की सिद्धि करे। जो भव्योत्तम मुनिराज सद्धर्मरूपी सुधा से तृप्त रहते हैं, और परोपकार जिनका जीवन व्रत है, वे मुझ पर सदा प्रसन्न रहें। जो कामदेव सरीखे मतंग को परास्त करने वाले हैं, जो काम क्रोधादि श्रन्तरंग शत्रुओं के विनाशक हैं, जो संसार महासागर से भयभीत रहते हैं, ऐसे मुनिराज के चरण कमलों को मैं बार-बार नमस्कार करता हूँ। जो भव्यजन दुष्ट-जनों के बचनरूपी विकराल सर्पों से कभी विकृत नहीं होते एवं सदा दूसरे के हित में रत रहते हैं, उन्हें भी नमस्कार करता हू। साथ ही जो दूसरों के सदा विघ्न उत्पादन करने वाले हैं तथा जिनका हृदय कुटिल है और जो विषैले सर्प के समान निन्दनीय हैं, उन दुष्टजनों को भय से मैं नमस्कार करता हूं। अपने पूर्व महाऋषियों से श्रवण कर और भव्यजनों से पूछकर मैं श्री गौतम स्वामी का पवित्र चरित्र लिखने के लिए प्रस्तुत होता हूं, जो अत्यन्त सुख प्रदान करने वाला है। किन्तु मैं न्याय सिद्धान्त, काव्य, छन्द, अलंकार, उपमा, व्याकरण, पुराण आदि शास्त्रों से सर्वथा प्रनभिज्ञ हूं। मैं जिस शास्त्र की रचना कर रहा हूं, वह सन्धि-वर्ण शब्दादि से रहित है श्रतएव विद्वान पुरुष मेरा अपराध क्षमा करते रहें। जिस प्रकार यद्यपि कमल का उत्पादक जल होता है, पर उसकी सुगन्धि को वायु ही चारों मोर फैलाती है, उसी प्रकार यद्यपि काव्य के प्रणेता कवि होते हैं, पर उसे विस्तृत करने वाले भव्यजन ही हुआ करते हैं। यह परम्परा है। जिस प्रकार बसन्त कोयल को बोलने के लिए बाध्य करता है, उसी प्रकार श्री गौतम स्वामी की भक्ति ही मुझे उनके पवित्र जीवन चरित्र को लिखने के लिए उत्साह प्रदान करती है । मैं यह समझता हूं कि, जैसे किसो ऊंचे पर्वत पर आरोहण की इच्छा करने वाले लंगड़ की सब लोग हंसी उड़ाते हैं ? वैसे ही कवियों की दृष्टि में में भी हंसी का पात्र बनू गा; क्योंकि मेरी बुद्धि स्वल्प है ।
कथा आरम्भ
मध्यलोक के बीच एक लाख योजन विस्तृत जम्बू द्वीप विद्यमान है। वह जम्बू-वृक्ष से सुशोभित और लवण सागर से घिरा हुआ है। उसी द्वीप के मध्य में सुमेरु नाम का अत्यन्त रमणीय पर्वत है, जहां देवता लोग निवास करते हैं, उसी द्वीप में स्वर्ण रौप्य की छः पर्वत मालाएं हैं। इस मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम की ओर बत्तीस विदेह क्षेत्र हैं, जहां से भव्यजीव मोक्ष प्राप्त किया करते हैं । पर्वत के उत्तर-दक्षिण की घोर भोगभूमियां हैं, जहां के लोग मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं । उन भोग
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