________________
ही पकड़ ली जाती । परन्तु राज्याभिषेक के सम्वत् की मान्यता ने उस भूल को चिरकाल तक बना रहने दिया। उसो का यह नतीजा है जो बहुत से ग्रन्थों में राज्याभिषेक संवत् के रूप में हो विक्रम सम्वत् का उल्लेख पाया जाता है ओर काल गणना में इतनी हो गड़बड़ उपस्थित हो गई है, जिसे ग्रत्र अच्छे परिश्रम तथा प्रयत्न के साथ दूर करने का जरूरत है।
-
इसी गलती तथा गड़बड़ी को लेकर घोर तक का विषय त्रिलोकसादिक के वाक्यों का परिचय न पाकर धावुन इस वी वेंकटेश्वर ने अपने महावीर समय सम्बन्यो The date of Vardhamana नामक तेल में यह कल्पना को है कि महावीर निर्वाण के ४७० वर्ष बाद जिस विक्रम काल का उल्लेख जैन ग्रन्थों में पाया जाता है वह प्रचलित सम्वत् विक्रम संवत् न होकर अनन्द विक्रम संवत् होना चाहिए, जिसका उपयोग १२ वो शताब्दी के प्रसिद्ध कवि चन्दवरदाई ने अपने काव्य में किया है और और जिसका प्रारम्भ ईसवी सन् ३३ के लगभग अथवा यो कहिए कि पहले ( प्रचलित ) विक्रम संवत के ९० या ९१ वर्ष बाद हुआ है और इस तरह यहा पर सुकाया है कि प्रचलित वार निर्वाण सवत् में से ६० वर्ष कम होने चाहिए— अर्थात् महावीर का निर्वाण ईसवां मन से ५२० वर्ष पहले न मानकर ८३७ वय पहल मानना चाहिए या किसा तरह भी मान्य किये जाने के योग्य नहीं। आपने वह तो स्वीकार किया है प्रसव का नुसार वार निर्वाण ई० सन् से ५२७ वर्ष पहले ही यह बैठता है परन्तु महज इस बुनियाद पर असम्भावित करार दे दिया है कि इससे महायर का निर्माण वृद्ध निर्वाण से पहले ठहरता है आपका इष्ट नहीं। परन्तु इस तरह से उसे अभावित करार नहीं दिया जा सकता, क्योंकि बुद्ध निर्वाण ई० से सन् ५४४ वर्ष पहले भी माना जाता है, जिसका मापन काई निराकरण नहीं किया और इसलिए बुद्ध का निर्वाण महावोर के निर्वाण से पहले होने पर भा यापक इस कथन का मुख्य प्राधार आपको यह मान्यता हो रह जाती है कि बुद्ध निर्वाण ई० रान् से पूर्व ४८५ र ४५३ के मध्यवता किसी समय में हुआ है, जिसके समर्थन में आपने कोई भी सबल प्रमाण उपस्थित नहीं किया और इसलिए वह मान्य किन जान के योग्य नहीं । इसके सिवाय, नन्द विक्रम संवत् की जिस कल्पना का आप अपनाया है वह कल्पना हा निर्मूल है-अनन्दविक्रम नाम का कोई सवत् को प्रचलित नहीं हुआ और न वरदाई के नाम से प्रसिद्ध होने वाल "पृथ्वाराजा महा उसका उलार इस बात को जानने के लिए रायबहादुर प० गोरासकर हाराचन्द जाग्रा का अनन्द विक्रम संवत् का कल्पना नाम का वह लख पर्याप्त है जो नागरी प्रचारिणा पत्रिका के प्रथम भाग में पू० २७० से ४५४ त
बाब में एक बात यहां पर और भी बदला देना चाहता हूँ कि युद्धदेव भगवान महावार के समकालान थे। कुछ विद्वानों ने बौद्ध ग्रन्थ मज्झिमनिकाय के उपलियुक्त और सामगायतका सयुक्त पटवा का लकर बहुत कुछ प्राकृतिक पमूलक एवं जान पड़ता है और महाकार भगवान के साथ जिसका सम्बन्ध ठाक नहीं बतान किया है कि महावीर का निवांग बुद्ध के निर्वाण से पहुंचे हुआ है परन्तु वस्तुस्थिति ऐसा मालूम नहीं होता। खुद बाद्ध ग्रन्थी । में बुद्ध का निर्वाण बज (कृषि) के राजा के वर्ष में बताया है बार वाघनिकाय मं तत्कालीन वार्थक को मुलाकात के अवसर पर बात के मंत्रा के मुख से निधनात (महार) का जाप दिलाया है उसने महाबोर का एक विशेषण तो क्यों (ग) भी दिया है, जिसने यह स्पष्ट जाना जाता है कि बजाज का दिये जाने वाले इस परिचय के समय महावीर चंद उम्र के ये उनको अवस्था ५० वर्ष के लगभग था। वह परिचय यदि प्रजातन के राज्य के प्रथम वर्ष में ही दिया गया हो, जिसको अधिक सम्भावना है, तो कहना होगा कि महावार अजातशत्रु के राज्य के २२ वर्ष तक जोबित रहे हैं, क्योंकि उनको प्रायु प्रायः ७२ वर्ष को थी । और इसलिए महावार का निर्वाण बुद्ध निर्माण से लगभग १४ वर्ष के बाद हुआ है । भगवती सूत्र आदि श्वेताम्बर ग्रन्थों से भी ऐसा मालूम होता है कि महावार निर्मााण से १६ वर्ष पहले गोशालक (मलित योवाल का स्वर्गवास हुआ, गोशालक के स्वर्गवास से कुछ वर्ष पूर्व प्रायः ७ वर्ष पहले
का राज्यारोहण हुआ, उसके राज्य के आठवें वर्ष में बुद्ध का निर्माण हुआ और बुद्ध का निर्वाण से कोई १४-१५ वर्ष बाद वा मजा के राज्य के २२ वे वर्ष में महावीर का निर्माण हुआ। इस तरह बुद्ध का निर्वाण पहने और महापोर का निर्माण उसके अजातशत्रु बाद पाया जाता है। इसके सिवाय हेमचन्द्राचार्य ने चन्द्रगुप्त का राज्यारोहण समय र निर्वाण से १५५ वर्ष बाद बतलाया है और 'दीपवंश' "महाबंध " नाम के बौद्ध ग्रन्थों में हो समय बुद्ध निर्माण से १६२ वर्ष बाद बतलाया है। इसने भी प्रकृत विषय का कितना ही समर्थन होता है और यह स्पष्ट जाना जाता है कि चोर निर्वाण से बुद्ध निर्वाण अधिक नहीं तो ७-६ वर्ष के करीब पहले जरूर हुआ है।
बहुत संभव है कि बौद्धों के सामगामसुत्त में वर्णित निगंठ नातपुत्त (महावीर ) को मृत्यु तथा सबभेद समाचार वाली घटना मजलिपुत्त गोशाल की मृत्यु से सम्बन्ध रखती हो और पिटक ग्रन्थों को लिपिवद्ध करते समय किसा भूल मादि के वंश
५६१