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सत्तसए तेवण्णे विक्कमरायस्स मरणपत्तस्स ।
णंदियड़े बरगामे कट्ठो संघो मुणेयन्बो ।।३।। विक्रम संवत के उल्लेख को लिए हए जितने ग्रन्थ अभी तक उपलब्ध हुये हैं उनमें, जहां तक मुझे मालूम है, सबसे प्राचीन ग्रन्थ यही है। इससे पहले धनपाल का पाइनलच्छो नाममाला (वि० स०१०१६) और उससे भी पहले अमितगति का सुभाषितरत्नसंदोह ग्रन्थ पुरातत्वज्ञों द्वारा प्राचीन माना जाता था। हां शिलालेखों में एक शिलालेख इससे भी पहले विक्रम संवत् के उल्लेख को लिए हए है और वह चाहमान चण्ड महासेन का शिला नेग्न है, जो धौलपुर से मिला है और जिसमें उसके लिखे जाने का संवत् १९८ दिया है. जसा कि उसके निम्न गंश रोएकाट है:-..
वसु नव अप्ठी वर्षागतस्य कालस्य विक्रमास्यस्य । यह अंश बिक्रम संवत् को विक्रम को मृत्यु का संवत् बतलाने में कोई बाधक नहीं है और न पाइअलच्छी नाम माला का विकम् कालस्स गए अउणनी (पणवो) सुनरे सहस्सम्मि यश हा इसमें कोई बाधक प्रतीत होता है बल्कि ये दोनों ही अंश एक प्रकार मे साधक जान पढ़ते हैं, क्योंकि इनमें जिस विक्रम वाल ने बीतने की बात कही गई है और उसके बाद के बीते हुए बों को गणना का गई है वह विक्रम का अस्तित्वकाल-उसको मृत्यु पर्यन्त का समय ही जान पड़ता है। उसी की मृत्यु के बाद बोतना प्रारम्भ हुमा है। इसके सिवाय, दर्शनसार मैं एक यह भी उल्लेख मिलता है कि उसका गाथाय पूर्वाचार्यों का रची हुई हैं पार उन्हें एकत्र सत्रय करके ही यह ग्रन्थ बनाया गया । । यथा :
पुवायरियकयाई गाहाइ संचिऊण एयस्थ । सिरिदेवसेणगणिणा धाराए संबसलेण ॥४६।। रइयो दसणसारो हारो भव्वाण णवसए णवए।
सिरिपाराणाहगेहे सुबिसुद्धे माहसुद्धदसमोए ।।५।। इससे उक्त माथायी के और भी अधिक प्राचीन होने को संभावना है और उनकी प्राचीनता से विक्रम सवत को वित्रम की मृत्यु का संवत् मानने का बात और भी ज्यादा प्राचान हो जाता है। विक्रम संवत् का यह मान्यता अमितगति के बाद भी असं तक चलो गई मालूम होता है। इसी से १५ व १६ वीं शताब्दी तथा उसके करीब के बने हुए ग्रन्थों में भी उसका उल्लेख पाया जाता है, जिसके दा नमूने इस प्रकार हैं:
मते विक्रमभूपाले सप्तविंशतिसंयुते । दशपंचयतेऽन्दानामती ते श्रृणुतापरम् ॥१५७॥ नुकांमतमभूदेक..................... ॥१५८।।
-रत्ननन्दिकृत भद्रबाहु चरित्र सपदिश शतेऽब्दानां मृते विक्रमराजनि । सौराष्ट्र वल्लभीपुर्यामभुत्तत्कथ्यते मया ॥१८॥
वामदेवकृत, भावसंग्रह
इस सम्पूर्ण विवेचन पर से यह बात भली प्रकार स्पष्ट हो जाती है कि प्रचलित विक्रम संवत् विक्रम को मत्यु का संवत् है,जो वीर निर्वाण से ४७० वर्ष ५ महोने के बाद प्रारम्भ होता है प्रोर इसलिए वोर निर्वाण से ४७० वर्ष बाद विक्रम राजा का जन्म होने को जो बात कहो जाती है। ग्रोर उसके आधार पर यह बात हो ठोक बैठती है कि इस विक्रम से १८ वर्ष की अवस्था में राज्य प्राप्त करके उसो वक्त में अपना सपत प्रचलित किया है। ऐसा मानने के लिए इतिहास में कोई भी समर्थ कारण नहीं है। हो सकता है कि यह एक विक्रम का बाल को दूसरे विक्रम के साथ जोड़ देने का हो नतोजा हो । इसत्रे सिवाय, नन्दिसंघ की एक पदावली में-विक्रम प्रबन्ध में भी-जो यह वाक्य दिया है कि
सत्तरिच दुसदजुतो जिणकाला विक्कमो हबइ जम्मो ।
अर्थात् जिन काल से (महावीर के निर्माण से) विक्रम जन्म ४७० वर्ष के अन्तर को लिये हुए हैं । और दूसरी पट्टावलो
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