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पणछस्सयवस्सं पणमासजूदं गमिय वीरणिभ्य इदो।
सगराजो तो ककको चदुणवतियमयिसगमास ।।८५०।। इस में बतलाया गया है कि महाबीर के निर्वाण से ६०५ वर्ष ५ महीने बाद शक राजा हुआ और शक राजा से ३९४ वर्ष १७ महीने बाद कल्की राजा हुया। शक राजा के इस समय का समर्थन हरिवशपुराण नाम के एक दूसरे प्राचीन ग्रन्थ से भी होता है जो त्रिलोक सार से प्राय: दो सौ वर्ष पहले का बना हुआ है और जिसे श्री जिन सेनाचार्य ने शक सं०७०५ में बनाकर समाप्त किया है। यथा :-.
वर्षाणां षट्शतीं त्यक्त्वा पचाना मासपंचकम् ।
मुक्ति गते महावीरे शकराजस्ततोऽभवत् ।।६०-५४६॥ इतना ही नहीं, बल्कि और भी प्राचीन ग्रंथों में इस समय कारल्लेख पाया जाता है, जिसका एक उदाहरण "तिलोयपण्णनी" (त्रिलोकप्रज्ञप्ति) का निम्न वाक्य है ..
जिवाणे वीरजिणे छन्वाससदेसु पंचवारिसेसु ।
पणमासेसु गढेसु संजदो सगणियो अवा ।। शक का यह समय ही शक संवत की प्रवृद्धि का काल है, और इसका समर्थन एक पुरातन श्लोक से भी होता है, जिसे स्वेताम्बराचार्य श्री मेस्तुग ने अपनी विचार श्रेणी में गिम्न प्रकार से उद्धृत किया है :
श्रीवीरनिव तेषः षडभिः पंचोत्तरः शतः।
शाकसंवत्सरस्यैषा प्रवृत्तिभरते ऽभवत् । इसमें, रथूल रूप से वर्षों की ही गणना करते हुए, साफ लिखा है कि महावीर के निर्वाण से ८०५ वर्ष बाद इस भारतवर्ष में शकसंवत्सर की प्रवृत्ति हुई।
श्री वीरसेनाचार्य प्रणीत भबल नाम के सिद्धान्त भाध्य से-जिसे इस सम्बन्ध में धवल सिद्धान्त नाम से भी उल्लिखित वया गया है-इस विषय का और भी ज्यादा समर्थन होता है, क्योंकि इस ग्रन्थ में महावीर के निर्वाण के बाद केवलियों तथा श्रतधर प्राचार्यों की परम्परा का उल्लेख करते हुए और उसका काल परिणाम ६८३ वर्ष बतलाते हुए यह स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट किया है कि इस ६८३ वर्ष के काल में से ७७ वर्ष ७ महीने घटा देने पर जो ६०४ बर्ष ५ महीने का काल अवशिष्ट रहता है वही महावीर के निर्वाण दिवस से शक काल की आदि शक संवत की प्रवृत्ति तक का मध्यवर्ती काल है, अर्थात् महावीर के निर्वाण दिवस से ६०५ वर्ष ५ महीने के बाद शकसंवत् का प्रारम्भ हुआ है। साथ ही इस मान्यता के लिए कारण निर्देश करते हुए, एक प्राचीन गाथा के आधार पर यह भी प्रतिमादन किया है कि इस ६०५ वर्ष ५ महीने के काल में शक काल को-शक सवत की वर्षादि सस्या को जोड़ देने से महावीर का निर्वाणकाल-निर्वाण संवत् का ठोक परिणाम या जाता है । और इस तरह वीर निर्वाण संवत् मालूम करने की स्पष्ट विधि भी सूचित की है। धवल के वाक्य इस प्रकार है :--
सव्वकालसमासो तेयासीदिपिछस्सदमेतो (६३८) पुणो एत्थ सत्तमासाहियसत्तहत्तरिवासेसु (७७.७) अबणीदेसु पंचमासाहिय पंचत्तर छस्सदवासाणि (६०५-५) हवंति, एसोचीरजिणिदणिब्वाणगददिवसादो जाव संगकालस्य प्रादि होदि ताबदिय कालो (कुदो) एम्मि काले सगणरिदकालस्य पक्खिते वढ्ढमाणजिणणिन्दकालागमणादो। बुतंचपंच य मासा पंच य वासा छच्चे व होति वाससया । सगकालेण य सहिया थावेयन्यो तदो रासी।।"
- देखो, पारा जन सिद्धान्तभवन को प्रति, पत्र ५३७ । इन सब प्रमाणों से इस विषय में कोई सन्देह नहीं रहता कि शक सवत् के प्रारम्भ होने से ६०५ वर्ष ५ महीने पहले महावीर का निर्वाण हुअा है।
शक संवत के इस पूर्ववर्ती समय को वर्तमान शक सम्वत् १८५५ में जोड़ देने से २४६० की उपलब्धि होती है और यही इस वक्त प्रचलित वीर निर्वाण सम्बत् की वर्ष संख्या है। शक सम्बत और विक्रम सम्वत् में १३५ वर्ष का प्रसिद्ध अन्तर
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