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कर्मों का नाश कर श्रावी पृथ्वी (मोक्ष) मिलती है । यह ग्रन्थ भी सोलह माह में ही लिखा गया । इन सब कारणों से ग्रन्थ में १६ अधिकार दिये हैं । वास्तव में कवि की यह कल्पना सुन्दर है ।
इस ग्रन्थ की समाप्ति वि० सं० १८२५ में फाल्गुन शुक्ला पूर्णमासी बुधवार को हुई ।
ग्रन्थ का संकलित भाग
कविवर नवलशाह कृत 'वर्धमान पुराण' के अतिरिक्त इस ग्रन्थ में जो सामग्री दी गई है, वह विभिन्न स्थानों से लेकर संकलित की गई है। इस सामग्री में निम्नलिखित जानकारी सम्मिलित है
जैन धर्म और उसके मुख्य सिद्धान्त, जैन भूगोल, खगोल और अधोलोक का विस्तृत परिचय, कुलकरों और तीर्थंकरों का जीवन इतिहास, भगवान महावीर का काल निर्णय ( पं० जुगलकिशोर मुख्तार, डा० जंकोवो, डा० मुनि नगराज), भगवान महावीर की निर्वाण-भूमि पावापुरी, दैनिक तेज के प्रख्यात संवाददाता श्री धर्मपाल द्वारा लिखित भगवान महावीर का जीवन इंगलिश में, गौतम चरित्र, दिगम्बरत्व और दिगम्बर मुनि, महावीर-शासन को विशेषतायें, भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध, सिद्ध भूमियाँ ।
ग्रन्थ का नाम और उसके प्रकाशन का उद्द ेश्य
वर्धमान पुराण और उपर्युक्त संकलित सामग्री को देखते हुए ग्रन्थ का नाम श्री 'भगवान महाबीर श्रौर उनका तत्त्व दर्शन' प्रत्यन्त उपयुक्त प्रतीत होता है । यह ग्रन्थ भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण महोत्सव के उपलक्ष्य में प्रकाशित किया गया है । इतनी विपुल सामग्री और विशालकाय ग्रन्थ के प्रकाशन का एकमात्र उद्देश्य यही रहा है कि भगवान महावीर और उनके सम्बन्ध में सभी ज्ञातव्य बातें जिज्ञासु जैन और नरकको एक स्थान पर ही उपलब्ध हो जाँय 1 मैं यह कहने की स्थिति में हूं कि यह ग्रन्थ अपने उद्देश्य में सफल सिद्ध हुम्रा है ।
चित्रों के सम्बन्ध में
प्रस्तुत ग्रन्थ में दिये गये चित्रों के सम्बन्ध में भी दो शब्द कहना उचित प्रतीत होता है 'वर्धमान पुराण' की हस्तलिखित प्रति में लगभग ३५० चित्र भी दिये गये हैं। उन सबकी फोटो लेकर और उनके ब्लाक बनाकर वे अपने मूल रूप में ही दिये गये हैं । ये सभी चित्र विषय से सम्बन्धित हैं। इन चित्रों का महत्त्व इस दृष्टि से अधिक बढ़ जाता है कि ये मोलिक रूप में दिये गये हैं । इस प्रकार का प्रयत्न अब तक कभी नहीं किया गया। इसलिये यह प्रयत्न सर्वथा अपूर्व और मौलिक कहा जा सकता है। उनकी कला का मूल्यांकन करते समय इस बात को नहीं भुलाया जायगा, ऐसी अपेक्षा और आशा है ।
इन चित्रों के अतिरिक्त भी अनेक चित्र दिये हैं, जिनकी सूची काफी विस्तृत है। इन चित्रों में जंन भूगोल, खगोल और अधोलोक से सम्बन्धित चित्र अत्यन्त कलापूर्ण हैं और वे नवीन ढंग से तैयार कराये गये हैं। इनके तैयार करने में जिन महानुभावों ने सहयोग दिया और प्रयत्न किया है, वे प्रशंसा और धन्यवाद के पात्र है । उनमें मुख्य नाम हैं— श्रीपन्नालाल जैन प्राचिन कुमारी इन्दु कुमारी सन्तोष और श्री अरुणकुमार ।
इस सम्पूर्ण आयोजन का सम्पूर्ण श्रेय पूज्य श्राचार्य श्री देशभूषण जी महाराज को है और यह सब उनके आशीर्वाद का शुभ परिणाम हैं।
आभार प्रदर्शन
यहाँ मैं उन सभी दानदाताओं का हृदय से आभारी हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थ के प्रकाशन में धन या कागज देकर अपना सहयोग प्रदान किया है। (इन दानदाताओं की सूची पृथक से दी जा रही है।) मैं उन सज्जनों का भी आभार स्वीकार करता हूँ, जिन्होंने अपना प्रभूल्य समय और सुझाव देकर अपना सक्रिय सहयोग प्रदान किया । वैद्य प्रेमचन्द्र जी जैन ने इस ग्रंथ के प्रूफ संशोधन और प्रकाशन की व्यवस्था आदि में बड़ा श्रमसाध्य योगदान किया है। श्री भगवानदास जी जैन ने इसकी प्रेस कापी तैयार करने में बड़ा सहयोग किया है। में उनके प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता हूँ ।
सन्त में मैं आचार्यश्री के चरणों में अपनी श्रद्धा के कुसुम चढ़ता हुआ उनके दीर्घ जीवन की कामना करता हूँ।
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बलभन्न जैन
श्रावण कृष्णा प्रतिपदा वीर नि० सं० २४९८
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