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चौपाई
चतुरथ काल सुनो अव भेव, दुखमा सुखमा नाम कहेन । सागर कोडाकोड़ो एक, सहस बियालिस घटत सु लेक ||२१४|| प्रादि पूर्व इक कोड़ि जु प्राय, धनुप पंचसं उत्तम काय । पच वरण नर तन धुति गहै, नित्य अहार वार इक लहै ।।२१शा करमभूमि प्रगटी इहि थान, त्रिषट शलाका पुरुष महान । उपजै कमसौं प्रारज थान, प्रादि अन्तलों काल प्रमान ।।२१६|| चतुरवीस श्री जिनवर नाम, चक्रवर्ति द्वादश अभिराम । नव वल नव हरि नव प्रतिहरी, इनकी भेद सौं कछु धरी ॥२१७॥ चौदम कुलकर नाभि नरेन्द्र, मरुदेव श्रिय आनन्द कन्द । तिनके ऋषभदेव जिन ठये, जुगलधर्म निरवारत भये ॥२१॥
अडिल्ल
चौरासी लख पूर्व ऋषभ जिन आव है। ताकी गिनती लिखौ वरष ठहराव है ।। उनसठ लख सतबीस सहस चालीस है। इतने कोड़ाकोड़ी अंक इकईस है ॥२१॥
चौपाई कलप वृक्ष सब गये पलाई, जग प्राचम्भ भयो दुखदाई। क्षुधा तपा कर पीड़ी प्रजा, ग्राये प्रभु समोप कर रजा ॥२२॥ कर्मभमि को भेद बताय, सबको संबोधे जिनराय । असि मसि कृषि विद्या बहु वेष, वानिज पशुपालन उपदेशका जोलों कृषि उपज अब मही, इक्षु प्रहार लेउ सब सही। तब सि जाय इक्षुरस लयो, क्षुधा दुःख तिमको मिट गयो ।।२२२।। जय जय शब्द कियो तिन प्राय, प्रभु इक्ष्वाक वंश सुखदाय। तह पुन तीन बरन को थाप, शूद्र वैश्य क्षत्रिय प्रभु पाप ॥२२३।। क्षत्रिय वंश चार थपि साथ, निज इक्ष्वाकु सोम हरिनाथ | कुल बिबाहकी सीखजु दई, धर्म श्रिया सब ही विधि ठई ॥२२४॥ प्रभ पांचो कल्याणक साध, गये भोख अय जग पाराध । जिनके तनुग भरत चक्रेश, छही खण्ड के अधिप महेश
दोहा हूंठ मासकर हीन हैं. रही बरष तब चार । आदिनाथ जिन शिव' गये, तीज काल मंझार ॥२२६।।
निम्न लिखित हैं-ऋषभ, अजित, सम्भव, अभिनन्दन, सुमति, पद्मप्रभ, सुपाव, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयान्श, वासपज्य. विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अरह, मल्लि, मुनिसुव्रत, नमि, नेमि, पाश्र्वनाथ एवं श्री बर्द्धमान महावीर । ये धर्मके प्रवर्तक हैं और संसारके स्वामी हैं । बारह चक्रवर्ती है जिनके नाम निम्न लिखित हैं-भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्तिनाथ, कुन्थ नाय. अरमाथ, सुभम, महापद्म, हरिषेन, जयकुमार एवं ब्रह्मदत्त । नी बलभद्र हैं जिनके नाम ये हैं-विजय, अचल, धर्म, सप्रभ. मदर्शन, नान्दी, नन्दिमित्र, पम (रामचन्द्र) (राम) पार बलदेव । नौ नारायण हैं जिनके नाम ये है-त्रिपुष्ट, द्विपष्ट, स्वयम्भ समोसम, पुरुष सिंह, पूण्डरोक, दत्त, लक्ष्मण एवं श्री कृष्ण। ये सबके सब तोनों खण्डोंके स्वामी, धौरबार एवं स्वभावत: रौद्र परिणामी होते हैं। इन उपयूक्त नी नारायण के अश्वग्रीब, तारक, मेरक, निशुम्भ, कोटमारि, मधुसदन, वलि हन्ता, रावण और जरासन्ध ये नौ प्रति नारायण हैं। ये भी सज नारायणके ही समान सम्पत्तिशाली एवं मर्धचक्रो होकर नारायणके शत्र होते हैं। इन्हींको तिरसठ शलाका पुरुष कहा गया है । इन पूजनीय महात्मायोंको मनुष्य, देव एवं विद्याधर प्रभृति सभी वन्दना किया करते हैं । थी जिनेश महावीर प्रभुने इनके जन्म वृत्तान्तोंसे परिपूर्ण वृथक् पृथक् पुराण में सबको मोक्ष प्राप्ति के निमित्त विस्तार पूर्वक कहा । उन पुराणों में इनको सम्पत्ति, आयु, वल, वैभव एवं सुख का विस्तृत वर्णन है । गणधर देव तथा अन्यान्य उपस्थित भव्य जीव समूह के सामने श्रीमहाबीर प्रभने इन सब बातों को कहा।
इसके याद पांचवें दुःखमकालका वर्णन उन्होंने प्रारम्भ किया दुःखमकाल नानाविध दुःखोंसे प्रोत-प्रोत है। इसका प्रमाण इक्कीस हजार वर्षका है। इस काल के प्रारम्भ में एक सौ बीस वर्ष की आयु वाले तथा ७ हाथ लम्बाईमें ऊचे शरीरको धारण करने बाले मनुष्य उत्पन्न होते हैं। इनकी बुद्धि मन्द होती है, शरीर रुखा होता है, सुखसे होन होते हैं, बहुत बार भोजन करने