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हैं एका अवतारी सोय, प्रनमैं तिनहि इन्द्र सुर जोय । प्रभु दीक्षा कल्याणक वाज, आवें सकल महोत्सव साज ॥७॥ महावीर जिनवर जब देखि, अपनो जन्म सफल कर लेखि । तीन प्रदक्षिण दे शिर नाय, प्रणमें भुवि कर शोस लगाय ।।८।।
प्रकार के खिलौने ग्रादि के द्वारा उनका विशेष मनोरंजन करती थी। जब बे देवियां उन्हें सम्बोधन कर बुलाती तो वे बालक भगवान मुस्कराते हुए उनके पास चले जाते थे। तीर्थकर भगवान की अवस्था चन्द्रमा की कला की भांति बढ़ने लगी। उनकी बाल सुलभ चपलता से माता-पिता को बड़ा ही प्रानन्द होता था।
दिगम्बरीय सम्प्रदाय के अनुसार थी वर्द्धमान महावीर सारी उम्र ब्रह्मचारो रहे, परन्तु श्वेताम्वरी सम्प्रदाय इनका यशोदा में विवाह होना बताता है। श्री वर्तमान के ब्रह्मचारी होने या न होने ने उनकी विशेषता या गुणों में कोई कमी नहीं पड़ती। अनेक नीर्थकर ऐसे हुए जिन्होंने विवाह कराया, परन्तु, निष्पक्ष विद्वानों के ऐतिहासिक रूप से विचार करने के लिए दोनों सम्प्रदायों के प्रमाण देना उचित है।
पद्मपुराण हरिवंशपुराण और तिलोरपुणती नाम के दिनम्बरीय ग्रन्थ बताते हैं कि २४ तीर्थबारों में से थी वासुपूज्य, मल्लिनाथ, अरिष्टनेमि, पार्श्वनाथ और महावीर पांच बाल-पनि हुए हैं, जिन्होंने 'कुमार' अवस्था में संसार त्याग दिया था । श्वेताम्बरीय ग्रन्थ भी अपने पउमरिय तथा आवश्यक नियुक्ति नाम के ग्रन्थों में इसी बात को स्पष्ट रूप से स्वीकार करते है कि महावीर ने 'कुमार' अवस्था में समार त्याग दिया था ! अब केवल यह देखना है कि 'कुमार' राब्द का अर्थ क्या है ? 'कुमार' का अर्थ है कुबारा यानी अविवाहिन अथवा ब्रह्मचारी ! आवश्यकनियुक्ति की गाथा २२१-२२२ में 'कुमार' शब्द का मतलब यदि बाल्यावस्था होता तो उसी ग्रन्थ की गाथा २२६ में 'परमवस' अर्थात् पहली यानी कुमार अवस्था में वीर स्वामी के दीक्षा लेने का कथन न आता ! इससे और भी स्पष्ट हो गया कि पहली बार गाथा २२१ और २२२ में 'कुमार' शाब्द का अर्थ अविवाहित अर्थात् ब्रह्मचारी ही है, जैसा कि स्वयं श्वेताम्बरीय मुनि श्री कल्याण विजयजी भी स्वीकार करते है कि भगवान महावीर के अविवाहित होने की दिगम्बर सम्प्रदाय की मान्यता बिल्कुल गिराधार नहीं है ?
श्वेताम्बरीय प्रसिद्ध मुनि श्री चौथमलजी महागज ने अपने 'भगवान महावीर का आदर्श डीवन' के पृ० १६१ जो भगवान महावीर की जन्म कुण्डली दी है । उसी के आधार पर श्री ऐल० ए. फल्टेन माहब ने ज्योतिष की दृष्टि से भी रही मिद्ध किया कि भगवान महावीर का विवाह नहीं हुआ बल्कि वे ब्रह्मचारी थे।
जब दिगम्बर सम्प्रदाय दूसरे अनेक तीर्थ करों का विवाह होना स्वीकार करता है, यदि वर्तमान कुमार का भी विवाह होता तो कोई कारण न था कि श्री जिनसेनाचार्य में जहाँ इरिवंशपुराण में महावीर के विवाह की जो योजना का उल्लेख किया है, वे यशोदा में उनके विवाह होने का कथन न करते । वास्तव में भगवान महावीर का विवाह नहीं हुआ, वे बालब्रह्मचारी थे, निष्पक्ष विद्वानों ने भी उन्हें अखण्ड ब्रह्मचारी बताया है।
१. 'म्बयं श्वेताम्बरी प्राचीन ग्रन्थों, 'कल्पसूत्र' और 'आवारांगसुत्र' में भगावन् महावीर के विवाह का उल्लेख नहीं है। दवेताम्बरीय आवश्यक नियुक्ति में स्पष्ट लिखा है।' कि भगवान महावीर स्त्री-पारिग्रहण और राज्याभिषेक से रहित कुमारावस्था में हो दोषित हुए थे। (नवइत्थिआभिसेआ कुमारविवासमि पवश्या) अतएन बल्लभीनगर में जिस समय श्वे आगम-ग्रन्थ देबद्धि गरिंग क्षमा श्रमण द्वाग संशोधित
और संस्कारित किये गये थे, उस समय प्राचीन आचायों को नामावली चूणि गौर टीकाओं में विवाह की बात बढ़ाई गई सम्भव दीखती है। उम समय गुजरात देश में बोड़ों की संख्या काफी धी! वल्लभी राजाओं का आश्रय पाकर वे जनाचार्य अपने धर्म का प्रसार कर रहे थे। बौद्धों को अपने धर्म में सुगमता से दीक्षित करने के लिए उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए उन्होंने अपने धर्म में सुगमता से दीक्षित करने के लिा उन्हें अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए उन्होंने अपने आगगग्रन्थों ना संकलन बौद्ध ग्रन्थों के आधार से पित्या प्रतीत होता है। बौद्ध यात्री हा नसांग ने अपने यात्रा विवरण (पृ० १४२) में १४ लिखा है कि श्वेतपदधारी जैनियों ने बौद्ध-ग्रन्थों से बहुत-सी बातें लेकर अपने शास्त्र रच हैं। पाश्चात्य विद्वान् भी इसी बान को स्वीकार करते हैं कि राम्भवतः श्वेताम्बरों ने श्री महावीर जी का जीवन वृत्तान्त म. गौतमबद्ध के जीवन चरित्र के आधार से लिखा है। (बुल्हर, इण्डियन सेक्ट, आफ दी जन्स प्र. ४५) "ललित विस्तार' और "निदान कथा" नामक. बौद्ध ग्रन्थों में जैसा चरित्र गौतम बुद्ध का दिया है, उनमें श्वेताम्बरों द्वारा वरिणत भ. महावीर के चरित्र में कई बातों में सादृश्य है। कैमरेज हिन्ट्री आफ अधिक. १५६) इस दशा में दिगम्बर जैनियों को मान्यता समीचीन विदित होती है और यह ठीक है कि महावीर जी बाल ब्रह्मचारी थे।"
-कामताप्रसाद : भगवान महावीर पृ० ७६.८१ ।