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तिनहको कल्याणक एव, अमित पुण्यकर सैध्यो सेव । तुम दरशन सूरज परकाश, भव्यजीव अघ तिमिरै नाश ।।७१॥ रतन प्रमोल लक्ष्मी पाय, तुम दर्शन शिवपुर ले जाय । तुम दर्शन की बंठि जहाज, उतर भव-वारिधि कर काज॥७॥ तुम दरसै प्रभु मन वच काय, स्वर्गलोक फल पावै जाय । तुम्हारे गुण ले जो अनुसार, क्रमकर मुक्ति वरांगन बरं ।।७३।। मोह मत्ल जीते तुम दर्श, तुम रक्षक भवि जीवन सर्स । मोह जु अन्ध कूप ते काढ़ि, शरगागत राख्यौ सुख माहि७ि४।। प्रभु को जन्मभिषेक करेवा, मेरे कर्म नाश कर देव । तुम्हरे गुण जो सुमरन करे, सो तैसे गुण को बिस्तरै ।।७।। सम प्रस्तुति' मुखत उच्चरे, सो निज वचन सफलता कर । तुम गंधोदक चंदन करी, अंग पवित्र भयौ तिहि घरी ।।७।। तीन जगत स्वामी भगवान, तुम जगबन्धन हनत कृपान । तुम परमातम मुक्त प्रकाश, परमानन्द लोक शिर वास ।।७७।। तीर्थकर गुणसार तेह, अध मल दूर करन शुचि देह । तुम दर्शन निर्वाण महेश. अष्ट करम नाशन जगदेश ।।७।। पंचदि इन्द्रिय जीत्यौ लोभ, पंचकल्याणक कोनी शोभ । नमों मुक्ति अंगन भरतार लोकालोक प्रकाशनहार ||७६।। नमो श्रिजगपति लक्ष्मीनाथ, सकल' मुक्ति सामग्री साथ। बारबार प्रणमौं करजोर, दीजे मोह परमपद और ।।८।।
दोहा
दरशन कर सुरराज इम, सन्मति सार्थक नाम । कर्म निकन्दन वीर हैं, वर्धमान गुणधाम ||८|| ये त्रय नाम प्रसिद्ध कर, घर उत्साह सुरेश । ऐरावत प्रारूढ़ ह, कंध लिये जिन ईश ॥२॥
का होना दूसरों को निन्दा, अपनी प्रशंसा और रौद्रादि खोटे ध्यान का होना ये सब पापियों के चिन्ह हैं। (प्रश्न) असलो लोभी कौन है? (उत्तर) बुद्धिमान, मोक्ष का चाहने वाला भव्य जीव निर्मल आचरणों से तथा कठिन तपों से एक धर्म का सेवन करने वाला ही असली लोभी है। प्रश्न) इस लोक में विचारशील कौन है ? जो मन में निर्दोष देव शास्त्र गुरु का और उत्तम धर्म का विचार करता है, दूसरे का नहीं। (प्रश्न) धर्मात्मा कौन है? (उत्तर) जो श्रेष्ठ उत्तमक्षमा प्रादि दश लक्षण युक्त धर्म का पालन करता है। जिनेन्द्र देव की आज्ञा का पालन करने वाला ही बुद्धिमान ज्ञानी और व्रती है-वही धर्मात्मा है, दूसरा कोई नहीं। (प्रश्न) परलोक जाते समय रास्ते का भोजन क्या है ? (उत्तर) जो दान, पूजा, उपवास व्रतशील संयमादिक से उपार्जन किया गया निर्मल पुण्य है, वही परलोक के रास्ते का उत्तम भोजन है। (प्रश्न) इस लोक में किसका जन्म सफल है? (उत्तर) जिसने मोक्ष लक्ष्मी के सुख को देने वाला उत्तम भेद विज्ञान पा लिया, उसी का जन्म सफल है-दूसरे का नहीं 1
(प्रश्न) संसार में सुखी कौन है ? (उत्तर) जो सब परिग्रह की उपाधियों से रहित और ध्यानरूपी अमृत का पान करने वाला वन में रहता है अर्थात् योगी है, वही सुखी है, अन्य कोई नहीं। (प्रश्न) इस संसार में चिन्ता किस वस्तु की करनी चाहिए? (उत्तर) कर्मरूपी शत्रुयों के नाश करने की और मोक्ष लक्ष्मी पाने की चिंता करनी चाहिए-दूसरे इन्द्रियादिक विषय सुखों की नहीं। (प्रश्न) महान उद्योग किस कार्य में करना चाहिए? (उत्तर) मोक्ष देने वाले रत्नत्रय, तप, शुभ भोग सूज्ञानादिकों के पालने में महान यत्न करना चाहिए । धन एकत्रित करने में नहीं, कारण धन तो धर्म से प्राप्त होगा ही।
(प्रश्न) मनुष्यों का परम मित्र कौन है ? (उत्तर) जो तप दान व्रतादि रूप धर्म को जबरदस्ती समझाकर पालन करावे और पाप कमों को छुड़ावे । (प्रश्न) इस संसार में जीवों का शत्रु कौन है ? (उत्तर) जो हित करने वाले तप दीक्षा व्रतादिकों को नहीं पालन करने दे, वह दुर्बुद्धि अपना और दूसरे का-दोनों का शत्रु है। (प्रश्न) प्रशंसा करने योग्य क्या है? (उत्तर) थोड़ा धन होने पर भी सुपात्र को दान देना निर्वल शरीर होने पर भी निष्पाप तप करना, यही प्रशंसनीय है। (प्रश्न) माता! तुम्हारे समान महारानी कौन है? (उत्तर) जो धर्म के प्रवर्तक जगत के गुरु ऐसे तीर्थकर देवाधिदेव' को उत्पन्न करे, वही मेरे समान है-दूसरो कोई नहीं । (प्रश्न) पण्डिताई क्या है ? (उत्तर) शास्त्रों को जानकर खोटा प्राचरण, खोटा अभिमान, जरा भी नहीं करना, और दूसरी भी पाप की क्रियाय नहीं करना, यही पण्डिताई है। (प्रश्न) मुर्खता किसे कहते हैं ? (उत्तर) ज्ञान के हित का कारण निर्दोष तप धर्म की क्रिया को जानकर आचरण नहीं करना । (प्रश्न) बड़े भारी चोर कौन हैं? (उत्तर) जो मनुष्यों के धर्म रत्न को चुराने वाले पाप के कर्ता और अनर्थ करने वाले ऐरोपांच इन्द्रिय रूप चोर हैं।