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________________ दोहा बहुविधि सुख सब भोगवै नप गुरु जन समुदाय । छहों मास पूरन भये, धर्म करत हित जाय ॥१३३॥ महिमा श्री जिनदेव का, तीन लोक सुखदाय । देखत भविजन धर्मवर जिन पर सदा सहाय ॥१३४॥ सोलह स्वप्न वर्णन चौपाई एक समय रानो जिनधाम, कोमल सेज करें विश्राम । निशा पाछिने पहर निदान, सोवै सख जुत नींद प्रमान ||१३|| जग प्रसिद्ध सपने निरभंग, देखे षोडस विधि सरवंग । पुण्य पाक फल जानो सोय, धर्महि ते भव कहा न होय ॥१३६।। प्रथमहि गज वोख्यो मद जात, ऐरावत सम उज्जल गात । दूजे वृपभ धवल निरमला, दोसे मनों चन्द्र श्री कला ॥१७॥ रक्तवरन देखो मृगराय, अति विकराल महाभयदाय । कमलादेवी न्हवन करत, हेम कलश ऊपर हारत ॥१३८॥ देखी दिव्य दामिनी धार, महामगंध पुष्पमय सार । घोडशकला सहित शशगेह, तारागण जत देख्यो सेह ।।१३।। पुनि देख्यो तमनाशन भान, उदयाचल ऊपर सख खान। कनककलश अति सन्दर दोय, रमा शोस प्रवलोक साय ।।१४०।। जगम मीन तह करत जु खेल, जल भोतर शुभ करें जकल । पुरन जल कर सरवर बनौ, फूल्यो कमल जहां प्रति धनी ॥१४१६ देख्यौ सागर प्रति गम्भीर, लहरन सी झक झोर नीर । फिर देख्यो सिंहासन संत, अति उतंग मणिमय सोभत ।।१४२।। सुर विमान आवत प्राकान, देख्यौ रतनजड़ित परकाश । भवनपति रय देख्यौ जोइ, पृथिवो धंसत जातु है सोई ।।१४३।। बहुत भांत रतननकी राश, देखो अति उद्योत प्रकाश 1 अगनि शिखा पुन देखो जबै, घूम रहित बहु दोपत सजे ॥१४४।। इहिविधि सोलह स्वप्न अनूप, जिन माता देख भर रूप । पार्छ गज इक शाभावंत, निज मुख में देख्यो प्रविशंन ॥१४॥ दोहा इहि अन्तर निशितम गयौ, भयौ घरन उद्योत । पठत पाठ विधि आदरो, च धरम के पोत ।।१४६।। चौपाई उठि प्रभात भवि समतावंत, सामायिक विधि करत महंत । कर्म महा परि चरन करे, जियपद जापहिये में धरै ।।१४७॥ कोई उठ शयन से सोय, पंच परम पद सूमिरे जाये । धर्म ध्यान धारे, निज अंग, कर्म शत्रु नास सरवंग ।।१४८।। कोई भविजन धीरजवंत, धरै ध्यान व्युत्सर्ग महत । इत्यादिक प्रारम्भ सुकर्म करें, प्रभात ध्यान यो धर्म ॥१४॥ जिन सूरज जब उदय कराय, खग घुका सम दुर्मत जाय । चार कूलिंगा तुरत पलाइ, अति भयभोत न धार धराइ ॥१५०।। है। जैसे अहत के वचन रूपी किरणों से भव्य जोषों के मन रूपी कमल विकसित हो रहे हैं, वैसे ही सूर्य की किरण कमलों को प्रफल्लित कर रही है। प्रतएव हे देवी, प्रज प्रातःकाल हो गया, जो सब प्रकार से सुख प्रदान करने वाला है। धर्म-ध्यान के लिये इससे उत्तम दूसरा समय नहीं होगा। तुम शीघ्र ही शय्या का परित्याग कर कम करो। तुम्हें सामायिक स्तवन आदि से कल्याणकारिणी सिद्धियां प्राप्त करनी चाहिए। ___ कुछ समय तक उसी प्रकार बाजों के शब्द और बन्दोजनों द्वारा मंगल गान होते रहे। वे महारानी एकदम जाग उठीं। उन्हें प्रातःकाल के देखे हए स्वप्नों से महान प्रसन्नता हई। शय्या त्याग कर उन्हाने मोक्ष प्राप्ति क उलय सस्तवन सामायिक प्रादि उत्तम नित्यकर्म प्रारम्भ किया। इस प्रकार को नित्य क्रिया सर्वया कल्याणकारिणा है और सब प्रकार से मंगल करने वाली है। . पश्चात् महारानी ने स्नान कर अपनाशृगार किया। वे आभषणों से सुसज्जित हो नौकरों को साथ लेकर महाराज की सभा में गयी महाराज अपनी प्राण प्रिया का अपनो योर आतो हई देखकर बड़े प्रसन्त हुए। उन्होंने रानी का बैठने के लिये अपना प्राधा ग्रासन समर्पित कर दिया। महारानो प्रसन्न चित्त हो उक्त आसन पर बैठा। उन्होंने बड़े मधुर शब्दों में
SR No.090094
Book TitleBhagavana Mahavira aur unka Tattvadarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages1014
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Principle, & Sermon
File Size36 MB
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