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लोक भावना
निर्जरा भावना
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ज्ञान दाप तप तेल भर पर सोधे भ्रम छोर । या बिधि बिन निकम नहि, चंठे पूरब चार ।। पंच महावत संचरण, समिति पंच परकार। प्रवल पंच इन्द्री विजय, धार निर्जरा सार ।।
बौदह राज उतंग नभ, लोक पप मंठान । तामें जीव अनादि नं, भरमन हैं बिन ज्ञान ।।