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सोरठा चयो तहां ते सोई, सिंह केतु नामा अमर । कनकोज्वल सुत होइ, कनक कांति तन जासको ॥६४||
चौपाई
जन्म उदाह पिता ने कियौ, बंदीजनं दान बह दियो । जिन प्रागार कराये सार, कल्याणक वरधावन हार ॥६५|| कोसी पजा महाभिषेक. पंचकल्याणक आदि अनेक । गीत करत श्रीर नचं अपार, नर समूह कोलाहल धार॥६६]] बाल चंद सम वद्धि कराय, पय पानी सों सुख अधिकाय । पाप जोग अति भीड़ा, कर, दिन दिन रूप-कला गण धरै ।। ६७||
अरिल्ल
श्राम सों जोवन पाय, शास्त्राभ्यासी ठयो। विधि विवाह की जास, पिता करतो भयो।। कनकबती तिय नाम, धर्मसौं सो मिली । कछ दिनन में कुवर एक कोनी भली ।।६८॥ महा मेह जिन तन, वंदव को गयो। भार्या सहित कुमार, बिम्ब पूजत भयो। भूषित ऋद्धि अनेक, गृप्ति त्रयके धनी । अवधिज्ञानि मुनिराय, देखि जस शिर मनी ।।६।।
छन्द चाल प्रणमें शिर चरण लगाई, मृख प्रापत कारणा राई । प्रभु अनघ धर्म है जोई, शिव करता भाषी सोई ।।७।। सुनकै तिन वचन सुयोगी, भाष सुनिये नप भोगी। भव समुद गिरं नर कोई, उखर वर सम्यक सोई ।।७१॥ शिव मन्दिर पीछे जाई, त्रैलोक्य राज्यको पाई। विधि सम्यक तत्व वखानी, शंकादि रहित परवानी।।७।।
समान उन दोनों का कनकोज्वल नामक पुत्र उत्पन्न हुमा । पिता ने पुत्र होने के ग्रामन्द में जैन मन्दिर में जाकर पंचकल्याणक की बड़ी भक्ति के साथ पूजा की इसके पश्चात दानादि से बन्धु बगैरह सज्जनों को तथा दीन दु:त्रियों को सन्तुष्ट करके नत्य गीत से जन्मोत्सव मनाया। वह रूपवान बालक दोजके चन्द्रमा को भांति ऋमक्रम से बढ़ने लगा। वह दुग्धपान वस्त्र अलंकारादि बाल्य मुलभ कामों से सबको प्रसन्न क्रिया करता था। वह थोड़े ही समय में अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर पारंगत हो गया और सर्व गुणों से सम्पन्न हुअा।
पश्चात जब बह जवान हुआ तो उसका विवाह उसके मामा की पुत्री कनकावतो नाम को कन्या से हमा। एक दिन वह कुमार अपनी पत्नी के साथ महामेरु पर्वत पर फ्रीड़ा करने के लिए तथा कल्याण के लिए चैत्यालयों की पूजा करने गया था 1 उस स्थान पर श्राकाशगामिनी आदि ऋद्धियों वाले अवधिज्ञानी सूनीश्वर को देख तीन प्रदक्षिणा दे उन्हें नमस्कार किया पश्चात् धर्म में अभिरुचि रखने वाला वह कुमार धर्म के सम्बन्ध में मुनिराज से पूछने लगा।
उसने पूछा-भगवान मुझे निदोष धर्म का स्वरूप बतायो जिससे मोक्षमार्ग में सहायता मिल सके । कुमार के वचनों को श्रवण कर मुनिने कहा-बुद्धिमान ! तू एकाग्र मन से सुन, मैं तुझे धर्म का स्वरूप बतलाता है। जो संसार समुद्र में डूबते हुये जीवों को उतार कर मोक्ष स्थान पर रखे अथवा उसे तीनों जगत का स्वामी बनाव, उसे धर्म कहते
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राज्यपद १. स्वर्ग में भी अहन्त भक्ति करने के पुण्य फल रो मैं विजयाद्ध पर्वत के उत्तर की तरफ कनकप्रभ नाम के देश में विद्याधरी के राजा पंख की कनक माला नाम वो रानी से कमकोज्वल नाम का बना पराक्रमी और धर्मात्मा राजकुमार हा । निथ मुनि के उपदेश से प्रभावित होकर और संसारी सुखों को क्षणिक जान कर भरी जवानी में दीक्षा लेकर जन ना हो गया।
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