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मार्गदर्शक :- आचार्य
श्री विश्वनन्दि निराज विहार करने हर मथुरा पुर पहुँचे, यहां पर
विशाधनंदि भी था, प्रसूत गाय ने मुनिराज के पेट में सींग मार दिया परन्तु गनिगत घबराये नहीं, और धैर्य पूर्वक परिषह सहन किया ।
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4.
पापी विशाम्बनींद ने मृति विश्य नन्दि जी से कहा कि आप को वह शक्ति कहां गई जो मुष्टि प्रहार से
शना नोडली थी. यह मुन मुनिराज को क्रोध श्रागय! नंक नेत्र लाल हो गये और बोले-दुष्ट नरे नप के महा-य को चुनोती दी है मैं मब के सामने नरे शरीर को छेदन कर गए।