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मावान महावीर
जीवन चरित्र श्री दि. जैन मन्दिर वैदवाड़ा में प्रा ३०० वर्ष प्राचीन हस्तलिखित शास्त्र के आधार पर
(कवि नवलशाह कृत)
मंगलाचरण
दोहा ऊंकार उच्चार करि, ध्यावत मुनिगण सोई। तामें गभित पंच गुरु, नित पद वन्दौं दोई॥२॥ गुण अनंत सागर विमल, विश्वनाथ भगवान । धर्म चक्रमय वीर जिन. वन्दों शिरधर पान ॥२॥ सिद्घारथ कुल-रवि-कमल, त्रिशला उर अवतार । वन्दी सन्मति चरणजुग, शुभ मति के दातार ॥३॥
छप्पय
जा पूरव अवतार मास, पट ते नव लौं वर, वरखे रत्न अमोल, सुभग छविवन्त पिता घर । देखसु अतिशय रूप, हेमगिरि कर्यो न्वहैन सुर, तृपति भयौ नहि सोइ, किए तब सहस अक्ष उर । वर्धमान थियवर्द्ध अति, मान कोति जगमें सही, मान बद्ध हिरदै नहीं, सुवर्द्धमान वासव कही ॥४॥ बालपनै जग सार, रमा तिन तजी तृणावत, धरी तपस्या जोर, घोर, वन अक्षकाम हत । भोजनदान महान, चन्दना सती जु दीनी, पंचाश्चर्य प्रवीण, देखि देवनि पुर किनी। देखि परिषह रौद्र अति, भयदायक जानौ महा, श्रीमहावीरनामा कह्यौ इहि अनन्त सुरगण लहा॥५॥ काम वीर्य को हन्यौ, शुक्लध्यानी–असिके जिनि, घाति कमरिपु छेद, चाप-केवल करिक तिनि । नर सर पूजित भये, धर्म दोविध परवाप्यौ, सुरग मुकतिको दाई, सकल भव्यनि प्रतिभास्यौ। इन आदि जगत विख्यात गुण, संपूरण जिनवीर वर, हर्षवन्त हो स्तुति करों, तिन गुण प्रापति जोर कर।।६।।
जो अखिल विश्व के स्वामी तथा सर्वमान्य अनन्त गुणों के समुद्र हैं, उन धर्मरूपी चक्र के धारक श्री महावीर भगवान की मैं वन्दना करता हूँ।
___ जिनके अवतार धारण करनेके पुर्व छह मास तक एवं गर्भ में आने के पश्चात् नव मास तक अर्थात पन्द्रह मास तक कुर ने रत्नोंकी वर्श की।
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