________________
थे युवा हो जाने पर उनका विवाह सम्बन्ध जुनागढ़ के राजा उग्रसेन (ये कस के पिता उग्रसेन से भिन्न थे) की गुणवती युवता परम सुन्दरी सुपुत्री राजमति के साथ निश्चित हुआ। बड़ी धूम-धाम से आपकी बारात जूनागढ़ पहुंची। वहां पर कृष्ण ने भगवान नेमिनाथ को वैराग्य उत्पन्न करने के अभिप्राय से बहुत पर एक बाड़े में एकत्र करा दिये। ये पशु करुण चीत्कार कर रहे थे। भगवान नेमिनाथ को अपने रथवाहक से ज्ञात हुआ कि इन पशुओं को मारकर मेरी बारात में आये हुए कुछ मांस भक्षी लोगों को लोलुपता पूरी की जायेगी। यह बात विचार कर उनको तत्काल बैराग्य हो गया । और वे तोरण द्वार से लौट आये। उन्होंने जूनागढ़ के समीपवर्ती गिरनार पर संयम धारण कर लिया। राजमती भी प्रायिका हो गई। ५६ दिन तपश्चर्या करने पश्चात भगवान नेमिनाथ को कंवलज्ञान हो गया । तदन्तर सर्वत्र विहार कर धर्म प्रचार करते रहे। उनके संघ में वरदत्त प्रादि ११ गणधर थे। १८ हजार सबै तरह के मनि थे । और राजगती मादि ४० हजार गायिकायें थो । सर्वाहिक यक्ष पाम्रकुस्मांडिनी यक्षी व शंख का चिह्न था। वे अन्त में गिरनार पर मुक्त हुए ।
उनके समय में उनके चचेरे भाई बलभद्र बलदेव तथा नारायण कृष्ण और प्रतिनारायण जरासंध हुऐ हैं।
भगवान पार्श्वनाथ इसी भरत क्षेत्र में पोदनपुर के शासक राजा अरबिन्द थे । उनका सदाचारी विद्वान मंत्री मरूभूमि था। उसको स्त्री बसुन्धरी बड़ी सन्दर थी। मरूभूमि का बड़ा भाई कमठ बहुत दुराचारी था। वह वसुन्धरी पर प्रासक्त था । एक दिन मरूभूमि का बड़ा भाई पोदनपुर से बाहर गया हुआ था । उस समय प्रपच बनाकर कमठ ने मरुभूति की स्त्री का शीलभंग किया। राजा अरबिन्द को जब कमठ के दुराचार का मालूम हुमा तो उन्होंने कमठ का मुख काला करके गधे पर बिठाकर राज्य से बाहर निकाल दिया। कमठ एक तास्त्रियों के प्राधम में चला गया। वहाँ पर एक पत्थर को दोनों हाथों से उठाकर खड़े होकर वह ना करने लगा। मरूभुति प्रेमवश उसमे मिलने पाया । कमठ ने उसके ऊपर वह पत्थर पटक दिया। जिससे कुचल कर मरूभूति मर गया।
मरुभुति मर कर दूसरे भव में हाथी हया और कमठ मरकर सर्प हुया। उस सर्प ने पूर्व भव का वर विचार कर उस हाथी की संड में काट लिया हाथी ने शान्ति से शरीर का त्याग कर सहस्रार स्वर्ग में देव पर्याय पाई। सर्प मरकर नरक में गया। मरूभूति का जीव १६ सागर स्वर्ग में रहकर विदेह क्षेत्र में विद्याधर राजा का पुत्र रश्मिवेग हुआ । कमठ का जीव नरक से निकाल कर विदेह क्षेत्र में अजगर हुआ। रश्मिवेग ने यौवन अवस्था में मुनि दीक्षा ले लो। संयोग से कमठ का जीव अजगर उन ध्यानमग्न मुनि के पास पाया तो पूर्वभव का वैर विचारकर उनको खा गया रश्मिवेग मुनि मरकर सोलहवें स्वर्ग में देव हए। कमठ का जीव अजगर मर कर छठे नरक में गया । मरूभूति का जोव स्वर्ग की आयु समाप्त करके विदेह क्षेत्र में राजा व्रजवीय का पुत्र वजनाभि हुना। वजनाभि ने चक्ररत्न से दिग्विजय कर सम्राट पद पाया। बहुत समय तक राज्य करने के बाद वह फिर समार से विरक्त होकर मुनि बन गया। कमठ का जीव नरक से निकल कर इसी विदेह क्षेत्र में भील हुश्रा । एक दिन उसने ध्यान में मग्न बजनाभि मुनि को देखा तो पूर्वभव का वर विचार कर उनको मार डाला।
मनि मरकर मध्यम गवयक के देव हुए। कमठ का जोक भील मरकर मरख में गया । मरूभूति का जीव अहमिन्द्र की प्राय समाप्त कर अयोध्या के राजा व्रजबाहु का आनन्द नामक पुत्र हुमा । प्रानन्द ने राज पद पाकर बहुत दिन तक राज्य किया फिर अपने सिर का सफेद बाल देखकर मुनि दीक्षा ले ली। मुनि दशा में अच्छी तपस्या की और तीर्थकर प्रकृति का बंध किया। कमठ का जीव नरक से आकर सिंह हुआ था। उसने इस भव में पूर्व वर विचार कर आनन्द मुनि का भक्षण किया । मुनि सन्यास से शरीर त्याग कर प्राणत स्वर्ग के इंन्द्र हुए । सिंह मरकर शम्बर नामक असुर देव हमा।
मरूभूति के जीव ने प्राणत स्वर्ण की प्रायु समाप्त कर बनारस के इक्ष्वाकुवंशी राजा अशवसेन की रानी वामादेवी के उदर से २३ वें तीर्थकर पाश्र्वनाथ के रुप में जन्म लिया। भगवान नेमिनाथ के ८३ हजार सात सौ पचास वर्ष बीत जाने पर भगवान पार्श्वनाथ काम हया था। भगवान पार्श्वनाथ की आयु १०० वर्ष की थी। उनका शरीर हरित रंग था। नौ हाथ
२८६