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विषय को ग्रहण करने की शक्ति पूर्ण होने को कहते हैं। पेलावास निकालने की शक्ति पूर्ण होने को श्वासोच्छवास पर्याप्त कहते हैं । भाषा वर्णनों से श्रानेवाले पुद्गल का वचन रूप से परिणमन करने की शक्ति को पूर्ण करने वाली शक्तिको भाषा पर्याप्त कहते हैं। मनोवगंणा से उत्पन्न होनेवाले श्रुत अनुभूत विषय को स्मरण करनेवाली शक्ति को पूर्ण होने को मनः पर्याप्त कहते हैं। ये छ: पर्याप्तियों में एकेन्द्रि जीवों को पहले की चार आहार शरीर इन्द्रिय और स्वासोच्छवास ये चार पर्याप्ति रहती हैं। दो इन्द्रिय तीन इन्द्रिय चार इन्द्रिय इनको पाँच पर्याप्त रहती हैं। और मन सहित पंचेन्द्रिय जीव को छः पर्याप्त रहती हैं। पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा से समस्त जीवों में चौदह भेद होते हैं ।
जीव समास
स्थूल (बादल) एकेन्द्रिय सूक्ष्म द्वित्रिचतुरिन्द्रिय मन रहित पंचेन्द्रिय मन सहित पंचेन्द्रिय
पर्याप्त/पर्याप्त
१ + १
१+१
३+३
१+१
१+१
(२)
माता पिता के रक्त और रज वीर्य मिलकर होता है । सम्मूर्छन और गर्भ ये दोनों से उत्पन्न हुये और पोतज ।
(२)
(६)
(२)
(२)
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इन चौदह भेदों को जीव समास कहते हैं ।
जन्म के भेद
सम्पूर्ण जीव जन्माधीन हैं। नवीन शरीर धारण करने को जन्म कहते हैं। ये जन्म संमूर्च्छन गर्भ और उत्पादन ऐसे तीन प्रकार के होते हैं 1
मूर्च्छन जन्म- समन्ततो मूर्चनम् संमूर्चनम् ।
माता पिता के वीर्य रक्त सम्बन्ध रहित अपने योग्य क्षेत्र काल और भाव की विशेषता से चारों ओर से पुद्गल वर्गणा को ग्रहण करके शरीर आदि की रचना होने को संमूर्च्छन कहते हैं। यह एक, दो तीन और चार पंचेन्द्रिय जीवों के जन्म अर्थात् देव नारकी और गर्भ जन्म के मनुष्य और तिर्यंच को छोड़कर शेष में सम्मूर्चन जन्म होता हैं ।
गर्भ जन्म - शुक्र शोणित वर्ण: गर्भः
होने वाले जन्म को गर्भ जन्म कहते हैं। यह मनुष्य और तिर्यंच जीव के शरीर को औदारिक शरीर कहते हैं। ये तीन प्रकार के हैं-जरायुज, अण्डज
जरायुज - जाली के समान जीव को घेरा हुआ रहता है उसको जरायुज कहते हैं। इससे उत्पन्न होने वाले जीव को जरायु कहते हैं। उदाहरणार्थ मनुष्य और पशु ।
अण्डज - नख के समान सफेद और कठिन रक्त वीर्य से आच्छादित और गोल रहने वाले उसको प्रण्ड कहते हैं, इससे उत्पन्न होने वाले जीव को अण्डज कहते हैं। उदाहरण हंस कबूतर श्रादि ।
पोत — इसको प्रावरण नहीं है। ऐसे योनि से बाहर श्राते ही हलन चलन चलने फिरने आदि में समर्थ होने बाले जीव को पोत कहते हैं । उदाहरणार्थं सिंह और व्याघ्र । इस प्रकार गर्भ जन्म तीन प्रकार के होते हैं ।
उत्पाद जन्म-उपेत्या पद्येतस्मिन् नित्ययुक्तपाद
जन्म के प्रकार को तैयार होने वाले स्थान को उत्पाद कहते हैं । ये उत्पाद जम्म भवन व्यतंर ज्योतिषि और कल्प 'अर्थात् देव गति में उत्पन्न होने वाले और नरक गति में नारकीय जीवों के जन्म को उत्पाद कहते हैं। ये जीव वहाँ जा करके अन्तर्मुहूर्त में अर्थात् ४८ मिनट के अन्दर यौवन अवस्था को प्राप्त होते जैसे मनुष्य सोते हुये जाग्रत होता है उसी प्रकार इनका जन्म होता है उसको उत्पाद जन्म कहते हैं ।
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