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२. पाताल
पाताल
विस्तार यो.
दीवारों की ति.प.
| गहराई
३२।४।
ह. पु.। त्रि. सा. । ज. प. । ५।गा. सा. १०।गा.
विशेष | मूल में
मध्य में | ऊपर ।
मोटाई ।।४गा. | १३३ प.
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-
ज्येष्ठ
१००,०००
१०,०००
मध्यम | १,०००
ܘ ܘ ܘܨ ܘ ? |
०,००० १०,००० १,०००
५०० । २४१२ । १४ ५० २४१४ | २६ । ४५१ ५ २४३३ ३१ । ४५६
जघन्य
१००
३. पर्वत व द्वीप
|
नाम
विशेष
विस्तार
ऊंचाई
त.प.।४।
गा. नं०
त्रि.सा.। ज. प. १० गा. नं० गा.नं.
।
२८
पर्वत सागर के विस्तार की दिशा में ११६००० ! १००० गौतम द्वीप । गोलाई का व्यास | १२००० १२०००
६०८ ६१०
x
विस्तार
दृष्टि सं० २ . दृष्टि मं० २
१००
दिशाओं वाले विदिशा वाले
कुमानुष द्वीप
दे लोक ।४।१
अन्तर दिशा वाले पर्वत के पास वाले
छठी पृथ्वी में बदल नामक वित्तीय इन्द्रक का विस्तार दो लाख लेरासी हजार तीन सौ तेतीस पोजन और एक योजन के तीसरे भाग प्रमाण है।
३७५०००-६१६६६३=२८३३३३३।
छठी पृथ्वी में लल्लक नामक, तृतीय इन्द्रक का विस्तार एक लाख इक्यानवें हजार छह सौ छयासठ योजन और एक योजन के तीन भागों में से दो भाग प्रमाण है।
२८३३३३३-११६६६३-१६१६६६। सातवीं पृथ्वी में अवधिस्थान नामक इन्द्रक का विस्तार एक लाख योजन प्रमाण है। इस प्रकार जिनेन्द्र देव के वचनों से उपदिष्ट
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