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३. जम्बू द्वीप के पर्वतों के नाम:
१. कुलाचल आदि के नाम
जम्बू द्वीप में छह कुलाचल हैं-हिमवान, महाहिमवान, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी। सुमेरु पर्वत के अनेकों नाम हैं। कांचन पर्वतों का नाम कांचन पर्वत ही हैं। विजयाध पर्वतों के नाम प्राप्त नहीं हैं। है। शेष के नाम निम्न प्रकार हैं:नाभिगिरि तथा उनके रक्षक देव पर्वतों के नाम
देवों के नाम | ति.प.१४। रा.ब.।३।१०। १७२। क्षेत्र का
ह.पु. ।५।१६१।। ज.प. | ति.प. पूर्वोक्त रा. वा.। १७०४, १७४५.२१ १०११७२।३१-१-१६। त्रि. सा. ७१६ नाम
| !३।२०६] ह.पु. (५११६४ २३३५, २३५० १८११७ F१६।१८११२३
त्रि. सा.७१६
हैमवत
शब्दवान् हरि - विजयवान्
विकुतवान्
थद्वावान् श्रद्धावती विजयवान् निकटावती पद्मवान् | गन्धवती गन्धवान् 'माल्यवान
शाती (स्वाति) चारण (अरुण)
पद्म प्रभास
गन्धवान्
रम्यक দয় | हैरण्यवत् । गन्धमादन
मल्यवान्
AVEEx४४२०) + २६२-5) -(२९२-३)1:६-१७६८ १ ४४ := १९६८१४४= ५२
-:१३ प्र. पृ. का पद प्रमाण । अथवा दगुरणे चय से गित संकलित धन में वयं के अई भाग और मुख के अन्तर रूप संख्या के वर्ग को जोड़कर उसका वर्गमल मिकालने पर जो संख्या प्राप्त हो उसमें से पूर्व मूल को (जिसके वर्ग को संकलित घन में जोड़ा या) घटाकर शेष में चव का भाग देने पर विवक्षित पृथ्वी के पद का प्रमाण निकलता है।
[/(२४८४४४२०) २६२-३)२(२६२-६)]:८
=V७०७२०+२९४४--२८८.:18 -:१३ प्र. पृ. का पद प्रमाण
रत्नप्रभादिक प्रत्येक पृथ्वी के सम्पूर्ण बिनों की संस्था को रख कर उसमें से अपने-अपने श्रेणीबद्ध और इन्द्रक बिलों की संख्या को घटा देने पर शेष उस पृथ्वी के प्रकीर्णक बिल का प्रमाण होता।
प्रथम पृथ्वी के समस्त बिल ३००००००; ३००००००-(१३-1-४४२०)---२६६५५६७ प्र. प्र. के प्रकी. विल । प्रथम पृथ्वी में उन्तीस लाख पचानव हजार पांच सौ सढ़सठ प्रकीर्णक बिल हैं। २९६५५७ द्वितीय पृथ्वी में चौबीस लाख सत्तानवें हजार तीन सौ पांच प्रकीर्णक बिल हैं। समस्त बिल २५०२००२ - (२६८४-११)- २४६५३०५ द्वि. पृ. के प्रकी. बिम । तृतीय पृथ्वी में चौदह लाख अट्यानबें हजार पांच सौ पन्द्रह प्रकीर्णक बिल हैं। समस्त बिल १५००००-(१४७६-६)=१४६८५१५ तु. पृ. के प्रत्री, बिल। चतुर्थ पृथ्वी में प्रकीर्णक बिन का प्रमाण नौ लाख निन्यानवें हजार दौ सौ तेरानवे हैं।