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शांतिपक्ति
Poet Asag 2) Acharya Shreedhar 3y Sakalkirti 4) Shubh kirti.
कवि असग द्वारा ( 988 ) रवित हिन्दी महाकाव्य, अचार्य श्रीश्वर (ई. 132) कृत अपभ्रंश काव्य, सकलकीर्ति (ई 1496-14421 वृना 3475 संस्कृत पद्म प्रमाण ग्रंथ. शुभ कीर्ति (ई.स. 15 पूर्वार्ध) कृण अपभ्रंश काव्य ।
शांतिभक्ति Satanabhaka
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A great spiritual hymn written by Afry Pujyapad.
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आचार्य पूज्यपाद द्वारा संस्कृत में रचित एक भक्ति पाल, बिसमे B शार्दूलविक्रीडित छन्द है एवं उसके बाद राजिन.......इत्यादि एवं अंचलका है। इसके विधिवत् अनुष्ठान में लाई हुई ज्योति पुनः प्राप्त हो जातें है । शांतिसागर - Samrisagara.
Name of the firsl greal Jain Acharya of 20 century kesaphed Se Kalyansagar Maharaj बीस सदी के प्रथम आचार्य आप दक्षिण देश के भोज ग्राम (खेळगुळ) के रहने वाले क्षत्रिय वर्शाय भीमगोड़ा सत्यवती के पुत्र थे। आपका जन्म आषाढ कृ. वि. स. 1929 को हुआ ए० बर्ष की आयु में विवाह हो गया परन्तु मा ही आपकी पत्नी का देहांत हो गया। गुनः आपने विवाह न कराया और बि. सं. 1972 में देवेन्द्रकीर्ति मुनि से क्षुल्लक एवं सं. 1976 में उन्हीं से 47 वर्ष की आयु में मुनि दीक्षा ली। वि. सं. 1984 में जब आप सम्मेदशिखर जी पधारे तब आपके संघ में पुनि घव हुल्लक व ब्रह्मचारी आदि थे। इस कलिकाल में भी अपने आदर्श रूप से 12 वर्ष की मयाधि धारण की एवं वि.सं. 2000 ई. 1903 में प्रत्याख्यान छत धारण करके 14 अगस्त 1955 में कुंथलगिरि क्षेत्र पर इंगिनी धारण किया एवं 18 सितम्बर सन् 1955 रविवार प्रातः 7 बजकर 10 मिनट पर आप इस नश्वर देह को त्याग कर स्वर्ग सिधार गये। आपने 24 अगस्त 1955 को ही अपने सुयोग्य शिष्य वीरसागर जी महाराज को आचार्य पद का भार सौंप दिया था। वर्तमान में चल रही चतुर्विध संघ परम्परा आपके ही कृपाप्रसाद का फल है। वर्तमान आपकी परम्परा की छठी श्रृंखला में पछयू पट्टाचार्य आचार्य श्री कामिनादन सागर जी महाराज है । शांतिसागर परम्परा - Sammrisëgara Paramparā. The Iradition of firs! Digambar Jain Acharya Charitra Chakravarti Shri Shantisagarji Maharaj of 20th century, the renovator of Jaina asceticism of new age बीसवीं सदी के प्रथम दिगम्बर जैनाचार्य वारित्र चक्रवर्ती श्री
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तिसागर जी महाराज ने चूँकि इस युग में मुनिपरम्पर की पुनः जीवंत कर चतुर्विध संघ परम्परा को वृद्धिंगत किया, इसीलिए सम्पूर्ण दिगम्बर जैन समाज उन्हें निर्चिवाद रूप से प्रथम चारित्र चकली के में पहचानती है तथा उनकी परम्पको भीसवी सदी की मूल परम्परा के रूप में माना जाता है। इनके पखात् ही अनेक प्रकार की आचार्य परम्परा का भेद
भगवान महावीर हिन्दी-अंग्रेजी जैन शब्दकोश
पड़ा है जैसे- अंकलीकर खाणीत्यादि। इस परम्परा के आचार्यों के नाम क्रमशः इस प्रकार हैं-आचार्य शांतिसागर जी. आचार्य वीरसागर जी, आचार्य शिवसागर जी आचार्य धर्मसागर जी, आचार्य अजितसागर जी आचार्य प्रेमांससागर जी एवं वर्तमान आचार्य अभिनंदन सागर जी । इस नाम से आचार्यश्री कल्याणसागर महाराज के एक प्रसिद्ध शिष्य (ई.स. 20-21) भी हुए है ।
शौत्यष्टक - Saru yzstakaz.
A spintual hynn written by Acharya Pujyapad. आचार्य पूज्यपाद (ई.स. 5) द्वारा रचित संस्कृत शांतिभक्ति के प्रारंभिक B श्लोक |
शोर्ग - Sarivrga.
Name of a bow of Lakshman ( Narasya) | s one of his 7 jewels.
नारायण लक्ष्मण के धनुष का नाम, जो 7 रनों में एक रत्न था। शाकटायन न्यास - Šākajāyana Nyāsa.
Name of a Judicial composition written by Acharya Prabhachandra.
आचार्य प्रभाचन्द्र (ई. 950 10203 द्वारा संस्कृत भाषा में रचित न्याय विषयक ग्रंथ ।
शाकल्य - Sakalya..
A doctrine of ignorance, An ignorant one अज्ञानवाद के 67 में एक भेद या एक अचानवादी । Sākhā शाखा -
Branch, Division, Section. किसी भी विषय संबंधी उपभाग
शाप - Sapa.
Curse.
प्रधिश किसी के लिए अनिष्ट वचन कहकर दुराशी देना । जैन माधु किसी को शाम नहीं देते हैं। शामकुंड - Samakamhada.
Name of a commentator of first 5 parts of 'Shahshared".
या श्रागम के प्रथम 5 खण्डों पर पद्धति नामक टीका के रचयिता । समय ई.श. ३ का उत्तरार्थं । शारीरिक दुखSaririka Dukha.
Physical pain.
दुःख
| के 4 भेदों में एक भेद, रोगादि से उत्पन होने वाला शरीर संबंधी दुख
शालवन -
Śālavana
The initiation forest of Lord Charmanah. तीर्थंकर धर्मनाथ के दीक्षा वन का नाम ।
शालि - Sali.
A special type of rice. एक विशेष प्रकार का धान्य चावल । शालिसिथ मत्स्य - Salizilaha Matsya.
A special type of aquatic being (Tandul Marrya) तन्दुल मत्स्य इनका शरीर तण्डुल (चावल) के सिक्थ के