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भद्रबाहु संहिता
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धनिष्ठा में वस्त्र धारण करने से अन्न लाभ होता है। (विदुर्वारुणेविषकृतमहद्रयम्) शतभिखा में वस्त्र धारण करने से विष का महान भय होता है।
__ भावार्थ-उत्तराषाढ़ा में मिष्ठान्न की प्राप्ति, श्रवण में नेत्र रोग, धनिष्ठा में अन्न लाभ होता है और शतभिखा में नवीन वस्त्र धारण करने से विष का महान भय होता है।। १८८॥
भद्रपदासु भयं सलिलोत्धं तत्परतश्च भवेत्सुतलब्धिः । रत्नयुर्ति कथयन्ति च पौरणे योऽभि नवाम्बरमिच्छति भोक्तुम्॥१८९।।
(भद्रपदासु भयं) पूर्वाभाद्रपदा में वस्त्र धारण करने से भय होता है। (सलिलोत्थं तत्परतश्च भवेत्सुत लब्धिः ) उत्तराभाद्रपद में पुत्र लाभ होता है (पौष्णे रत्नयुतिं कथयन्ति च) और रेवती नक्षत्र में वस्त्र धारण करना रत्न प्राप्त कराता है (योऽभि नवाम्बरमिच्छति भोक्तुम्) ये सब नये वस्त्र धारण करने का फल है।
भावार्थ—पूर्वाभाद्रपदा में जल भय उत्तराभाद्रपद में पुत्र लाभ होता है रेवती नक्षत्रमें रत्नप्राप्ति होती है इस प्रकार नये वस्त्र धारण करने का फल है पुराने वस्त्र धारण करने का फल नहीं है।। १८९॥
वस्त्रस्य कोणेनिवन्ति देवा नराश्चपाशान्त शान्तमध्ये।
शेषास्त्रयश्चात्रनिशाचरांशास्तथैव शयनासनपादुकासु ॥१९० ।।
(वस्त्रकोणे देवनिवसन्ति) वस्त्र कोणे पर देव निवास करते है (पाशान्तशान्तमध्ये नराश्च) पाशान्त के दो भागों में मनुष्य (शेषास्त्रयश्चात्र निशाचरांशास्तथैव) शेष तीन भागोंमें निशाचर बसते है उसी प्रकार (शयनासनपादुकासु) शय्या, आसन, खडाऊँ के तो भाग करके फल का विचार करे।
भावार्थ... वस्त्र के नौ भाग करे उसमें वस्त्र के चारो कोणों में देवता पाशान्त के दो भागों में मनुष्य, शेष तीन स्थानों पर राक्षस बसते है उसी प्रकार शय्या, आसन, खडाऊँ के भी नौ भाग करके फल का विचार करें।। १९० ।।
लिप्ते मषी कर्दमगोमयाद्यैश्छिन्ने प्रदग्धे स्फुटिते च विन्द्यात् । पुष्टे नवेऽल्याल्पतरं च भुङ्क्ते पापे शुभं बाधिक मुत्तरीये ।। १९१॥