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भद्रबाहु संहिता
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वृक्षं वल्लींच्छुपगुल्मं वाल्मीकी निजाङगाम्।
दृष्ट्वा जागर्ति य: स्वप्ने ज्ञेयस्तस्यधनक्षयः॥१२८ ।। (या स्वप्ने) जो स्वप्न में (वृक्ष वल्लींच्छुपगुल्म) वृक्ष, लता, छोटे पेड़, गुल्म, (वाल्मीकिं निजङ्कगाम्) बामी को अपनी गोद में (दृष्ट्वा जागर्ति) देखकर जाग जाता है (तस्य धन क्षयः ज्ञेय:) उसका धन क्षय हो जाता है।
भावार्थ-जो स्वप्न में वृक्ष लता, गुल्म, छोटे-पेड़, बामी को अपनी गोद में देखता है उसका धन क्षय होता है॥ १२८ ।।
खजूरोऽप्यनलो वेणु गुल्मो वाप्पहितो द्रुमः।
मस्तके तस्य जायेत गत एव स निश्चितम्।। १२९॥
जो स्वप्न में अपने (मस्तके) मस्तक पर (खजूरोऽप्यनलो वेणु) खजूर, अग्नि से संयुक्त बांस, (गुल्मो) लता, (वाप्यहितोद्रुमः) और भी वृक्षः (जायते) होते हुए देखे तो (गत एव स निश्चितम्) समझो वो शीघ्र मर जायगा।
भावार्थ-जो स्वप्न में अपने मस्तकपर खजूर, अग्निबांस, लता, वृक्षादि होते हुऐ दिखे तो समझो शीघ्र मर जायगा ।। १२९॥
हृदये वा समुत्पन्नात् हृद्रोगेण स नश्यति।
शेषाङ्गेषु प्ररूदास्ते तत्तदङ्ग विनाशकाः ।। १३०।। अगर स्वप्न में (हृदये वा समुत्पन्नात्) उपर्युक्त वृक्षादि हृदय पर उत्पन्न हो तो (हृद्रोगेण स नश्यति) हृदय रोग से मरता है और, (शेषाङ्गेषुप्ररूढास्ते) अगर शेष अङ्गोंपर वृक्षादि दिखे तो (तत्तदङ्गविनाशकाः) उसी अंग में रोग होकर उसका विनाश होगा।
भावार्थ-अगर स्वप्न में उपर्युक्त वृक्षादि हृदय पर उत्पन्न हो तो वह हृदय रोग से मरता है शेष अंगों पर वृक्षादि दिखे तो उसी अंग से रोग होकर वह मरता है।। १३० ।। रक्तसूवरसूत्रैर्वा
रक्तपुष्पैर्विशेषतः। यदङ्गं वेष्टयते स्वप्ने तदेवाझं विनश्यति ।। १३१ ।।