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भद्रबाहु संहिता
भावार्थ- अब मैं क्रमशः हाथ, पाँव, घुटने, मस्तक, जंघा, उदर के नष्ट दिखने पर तथा जिनबिम्ब के दर्शन स्वप्न में होने पर उसका क्या फल होता है उसको कहता हूँ ।। ८२॥
कर भंगे चतुर्मासैः जानुभगे तु वर्षेण
त्रिमासैः पद मस्तके दिन
भङ्गतः । पञ्चभिः ॥ ८३ ॥
यदि स्वप्न में स्वयं के (कर भगे) हाथ भंग दिखे तो (चातुर्मासै;) चार महीने में (पद भङ्गता: त्रिमासैः ) पाँव भंग दिखे तो तीन महीने में (जानुभङ्गे तु वर्षेण ) घुटने भंग दिखे तो एक वर्ष में और ( मस्तकेदिन पञ्चभिः) मस्तक के भंग दिखने पर पाँच दिन में मरण होता है ।
वर्षयुग्मेन जङ्गायामं ब्रूयात् प्रात: फलं मंत्री
भावार्थ-स्वप्न में अपने या दूसरे के हाथ भंग दिखे तो चार महीने में पाँव भंग दिखे तो तीन महीने, घुटने भंग दिखे तो एक वर्ष में, और मस्तक भंग दिखे तो पाँच दिन में मरण हो जाता है ।। ८३ ॥
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सहीने
द्विपक्षत: ।
पक्षेणोदर भङ्गतः ॥ ८४ ॥
भने हटे
परिवारस्य परिवारस्य ध्रुवं मृत्युं
( जङ्घायामं वर्षयुग्मेन) स्वप्न में व्यक्ति अपनी जमा नहीं देखे तो दो वर्ष में मरण हो जायगा, (यामंसहीनेद्विपक्षतः) कंधा भंग दिखे तो दो पक्ष में मरण हो जायगा, (पक्षेणोदरभक्तः) पेट के नहीं दिखने पर एक पक्ष में मरेगा ऐसा (मन्त्री) मंत्री (प्रातः) प्रातः काल में (फलं ब्रूयात्) फल को कहते है ।
भावार्थ- स्वप्न में यदि अपनी जंघा नहीं दिखे तो दो वर्ष में मरण होगा, कंधा हीन दिखे तो दो पक्ष में मरण होगा, पेट के नहीं देखने पर एक पक्ष में मरण होगा, ऐसा मंत्री उठकर प्रातः फल को कहे ॥ ८४ ॥
निमित्तवित् । समादिशेत् ॥ ८५ ॥
छत्रस्य
नृपस्य
स्वप्न में (छत्रस्य परिवारस्य) परिवार को छत्र ( भने) भंग (निमित्तवित् दृष्टे ) भंग निमित्त ज्ञानी देखे तो (नृपस्य परिवारस्य) राजा के परिवार की (ध्रुवमृत्युं समादिशेत्) निश्चित मृत्यु कही गई है।
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