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भद्रबाहु संहिता |
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भावार्थ-छाया पुरुष का यदि गुह्य नहीं दिखे तो छह दिन की आयु समझनी चाहिये, हाथ नहीं दिखे तो चार दिन की आयु समझो, बाहु नहीं दिखे तो दो दिन की आयु समझो स्कन्ध हीन दिखे तो एक दिन की आयु है अब वह ज्यादा नहीं जीवेगा ।। ७६॥
यो नरोऽत्रैव सम्पूर्णः साङ्गोपाङ्ग विलोकते।
स जीवति चिरं कालं न कर्तव्योऽत्र संशयः॥७७॥ (यो नरोऽत्रैव सम्पूर्णैः) जो मनुष्य यहाँ पर सम्पूर्ण (साङ्गोपाङ्गै बिलोकते) साङ्गोपाङ्ग छाया पुरुष को देखता है (स जीवति चिरं कालं) वह चिरकाल तक जीता है (न कर्तव्योऽत्र संशयः) उसमें कोई सन्देह नहीं करना चाहिये।
भावार्थ..... मनुष्य कहाँ पर पूर्ण शाडोया लाया पुरुष को देखता है वह चिरकाल तक जीता है उसमें कोई सन्देह नहीं करना चाहिये। ७७।।
आस्तां तु जीवितं मरणं लाभालाभं शुभाशुभम् ।
यच्चिन्तित मनेकार्थं छायामात्रेण वीक्ष्यते॥७८॥ (आस्तां तु जीवितं मरणं) यहाँ पर छाया पुरुष को देखने पर जीवन, मरण, (लाभालाभंशुभाशुभम्) लाभ अलाभ शुभ और अशुभ (यच्चिन्तितमनेकार्थ) जो भी कुछ चिन्तित अर्थ है वह सब प्राप्त होता है (छायामात्रेण वीक्ष्यते) मात्र छाया पुरुष को देखने से।
भावार्थ यहाँ पर छाया पुरुष को देखने पर जीवन, मरण, लाभ, अलाभ, शुभ और अशुभ जो भी चिन्तित कार्य है वह सब छायापुरुष के अवलोकन मात्र से प्राप्त होता है ।। ७८॥
स्वप्नफलं पूर्वगतं त्वध्याये चाधुना परः।
निमित्तं शेषमापि तत्र किञ्चित् प्रकथ्यते सूत्रत: क्रमशः ।। ७९॥ (स्वप्नफलं पूर्वगतं) स्वप्नों के फल को पहले (त्वध्याये चाधुना पर:) अध्याय में वर्णन कर चुके है (निमित्तंशेषमपि तत्र किञ्चित्) शेष जो निमित्त पाकर कुछ भी होता है (क्रमश: सूत्रत: प्रकथ्यते) उसको क्रमश: यहाँ पर कहता हूँ।