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। भद्रबाहु संहिता ।
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अभिमन्त्र्य तस्य कायं पश्चादुक्ते महीतले विमले।
छायां पश्यतु स नरो धृत्वा तं रोगिणं हृदये।।६०॥ (तस्यकायं अभिमन्त्र्य) उस रोगी के शरीर को मन्त्रित करके (पश्चादुक्ते महीतलेविमले) फिर भूमि को पवित्र करके (तं) उस (रोगिणं हृदये धृत्वा) रोगी के हृदय को धारण कर (स नरो छायां पश्यतु) वह मन्त्री छाया को देखे।
भावार्थ-रोगी के शरीर को मन्त्रित कर भूमि को निर्मल बनावे उस स्थित होकर मन्त्रवादि छाया पुरुष को देखे ॥६॥
___ मन्त्र-ॐ ह्रीं रक्तरक्ते रक्तप्रिये सिंहमस्तक समारूढे कुशमाण्डिनी देवि अस्य शरीरे अवतर अवतर छायासत्यां कुरू कुरू ह्रीं स्वाहा। इस मन्त्र को १०८ बार जप को
या वक्रा प्राङ्मुखीच्छायाऽर्धा वाधोमुख वर्तिनी।
दृश्यते रोगिणो यस्य स जीवति दिनद्वयम् ।। ६१ ।। (या वक्रा प्राङ्मुखीच्छाया) जो छाया वक्र दिखे, प्राङ्मुखी दिखे (अर्द्धावाधोमुख वर्तिनी) अधोमुखी (यस्यरोगिणो दृश्यते) जिस रोगी को दिखाई पड़े तो (स जीवति दिनद्वयम्) वह दो दिन तक जीता है।
भावार्थ--जिस रोगी को छाया दिखाई जाय और उसकी वह छाया टेढ़ी, नीचे की ओर मुँह किये हुऐ, एवं प्राङ्मुख दिखाई पड़े तो समझो वह रोगी दो दिन जीवेगा ज्यादा नहीं क्योंकि उसकी आयु मात्र दो दिन की ही रह गई है।। ६१॥
हसन्ति कथयेन्मासं रुदन्ति च दिनद्वयम्।
धावन्ती त्रिदिनं छाया पादैका च चतुर्दिनम्॥६२॥ (हसन्तीकथयेन्मासं) अगर छाया हँसती हुई दिखाई पड़े तो एक महीने की आयु कहनी चाहिये, (रुदन्ति च दिनद्वयम्) रोती हुई दिखाई पड़े तो दो दिन की आयु कहे (धावन्ति त्रिदिनं छाया) दौड़ती हुई छाया को देखे तो तीन दिन की आयु कहे, (पादैका च चतुर्दिनम्) एक पाद भर छाया दिखे तो चार दिन की आयु कहे।