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भद्रबाहु संहिता ।
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राहु-दक्षिण दिशाका स्वामी, कृष्णवर्ण और क्रूर ग्रह है। जिस स्थानपर राहु रहता है, उस स्थानकी उन्नतिको रोकता है।
केतु-कृष्ण वर्ण और क्रूर ग्रह है।
जिस देश या राज्यमें क्रूर-ग्रहोंका प्रभाव रहता है या क्रूर ग्रह वक्री, मार्गी होते हैं, उस देश या राज्यमें दुष्काल, अवर्षा, नाना प्रकारके अन्य उपद्रव होते हैं। शुभग्रहोंके उदय और प्रभाव से राज्य या देशमें शान्ति रहती है। नवीन वस्त्रोंका बुध, गुरु और शुक्रको, द्वितीया, पञ्चमी, सप्तमी, एकादशी, त्रयोदशी और पूर्णिमा तिथिको तथा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तरा तीनों, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा और रेवती नक्षत्रमें व्यवहार करना चाहिए। नवीन वस्त्र सर्वदा पूर्वाह्नमें धारण करना चाहिए।
इति श्रीपंचम श्रुत केवली दिगम्बराचार्य भद्रबाहु स्वामी विरचित भद्रबाहु संहिताका नवीन वस्त्र धारणोध्यायका विशेष वर्णन करने वाला सत्तावीसवाँ अध्याय की हिन्दीभाषानुवाद करने वाली क्षेमोदय टीका समाप्त।
(इति सप्तविंशतितमोऽध्यायः समाप्तः)