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भद्रबाहु संहिता
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हमहु संहिता
आभूषणादि विधायक नक्षत्र हस्ताश्विपुष्याभिजितः क्षिप्रं लघुगुरुस्तथा।
तस्मिनन्पण्य - रतिज्ञानभूषा - शिल्पकलादिकम्॥ हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजित् ये चार नक्षत्र और बृहस्पति दिन, इनकी क्षिप्र और लघु संज्ञा है। इनमें बाजारका कार्य, स्त्री-सम्भोग, शास्त्रादिका ज्ञान, आभूषणोंका बनवाना और पहिनना, चित्रकारी, गाना-बजाना आदि कार्य सफल होते हैं।
मित्रकार्यादि विधायक नक्षत्र मृगान्यचित्रामित्रर्भ मृदुमैत्रं भृगुस्तथा।
तत्र गीताम्बरक्रीडामित्रकार्य विभूषणम् ।। ___ मृगशिरा, रेवती, चित्रा, अनुराधा ये चार नक्षत्र और शुक्रवार इनकी मृदु और मैत्र संज्ञा है। इनमें गाना, वस्त्र पहनाना, स्त्री के साथ रति करना, मित्रका कार्य और आभूषण पहनना शुभ होता है। पशुओं को शिक्षित करना तथा दारू-तीक्ष्ण विधायक नक्षत्र
मूलेन्द्राहिभं सौरिस्तीक्ष्ण दारुणसंज्ञकम् ।
तत्राभिचारयातोग्रभेदा: पशुदमादिकम्॥ मूल, ज्येष्ठा, आर्द्रा, आश्लेषा ये चार नक्षत्र और शनि तीक्ष्णं और दारुसंज्ञक हैं। इनमें भयानक कार्य करना, मारना, पीटना, हाथी-घोड़े आदिको सिखलाना ये कार्य सिद्ध होते हैं। ग्रहोंका स्वरूप जान लेना भी आवश्यक हैं।
सूर्य—यह पूर्व दिशाका स्वामी, पुरुष ग्रह, सम वर्ण, पित्त प्रकृति और पाप ग्रह है। यह सिंह राशिका स्वामी है। सूर्य आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य
और देवालयका सूचक है। पिताके सम्बन्धमें सूर्यसे विचार किया जाता है। नेत्र, कलेजा, मेरुदण्ड और स्नायु आदि अवयवोंपर इसका विशेष प्रभाव पड़ता है। यह लग्नसे सप्तम स्थानमें बली माना गया है। मकरसे छ: राशि पर्यन्त चेष्टावली है। इससे शारीरिक रोग, सिरदर्द, अपच, क्षय, महाज्वर, अतिसार, मन्दाग्नि, नेत्रविकार,