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भद्रबाहु संहिता
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उत्तरा
मूलेन क्लिश्यते वस्त्रं पूषायां रोगसम्भवः ।
वस्त्रदाख्याता श्रवणो नेत्ररोगदः ।।९।। (मूलेनक्लिश्यते वस्त्रं) मूल नक्षत्र में वस्त्र धारण करने से क्लेश होता है (पूषाया रोगसम्भव:) पूर्वाषाढ़ा में रोग, उत्तराभाद्रपद में धारण करने से बहुत वस्त्र प्राप्त होते है (श्रवणो नेत्र रोगद:) श्रवण नक्षत्र में वस्त्र धारण करने से नेत्र रोग होता है।
भावार्थ-मूल नक्षत्र में वस्त्र धारण करने से क्लेशका कारण होता है पूर्वाषाढ़ा में रोग उत्तराभाद्रपद में बहुत वस्त्रों की प्राप्ति और श्रवण में धारण करने से नेत्र रोग होता है।। ९॥
घनिष्टा अमलाभाच शतषिया विषाद्भयम्।
पूर्व भाद्रपदात्तोय मुत्तरा बहुवस्त्रदा॥१०॥ (धनिष्ठा धनलाभाय) धनिष्ठा में वस्त्र धारण करने से धन की प्राप्ति होती है (शतभिषाविषाद् भयम्) शतभिषा में विषाद् और भय होता है (पूर्वभाद्रपदात्तोय मुत्तरा) पूर्वाभाद्रपद में और उत्तराभाद्रपद में वस्त्र धारण करने से (बहुवस्त्रदा) बहुत वस्त्रों की प्राप्ति होती है।
भावार्थ—धनिष्ठा में वस्त्र धारण करने से धन की प्राप्ति होती है शतभिषा में विषाद् और भय होता है पूर्वाभाद्रपद में और उत्तराभाद्रपद में वस्त्र धारण करना बहुत वस्त्रों को प्राप्त कराने वाला है।। १० ।।
रेवती लोहिताय स्याद् बहुवस्त्रा तथाश्विनी।
भरणीयमलोकार्थ मेवमेव तु कष्टदा ।। ११ ।। (रेवती लोहितायस्याद्) रेवती नक्षत्र में नवीन वस्त्र धारण करने से लोह का जंग लगता है (बहुवस्त्रा तथाश्विनी) अश्विनी में धारण करने से बहुत वस्त्रों की प्राप्ति होती है (भरणी यमलोकार्थ) भरणी में अगर वस्त्र धारण करे तो मरणतुल्य लोक में (मेवमेव तु कष्टदा) बार-बार कष्ट होता है।
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