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पइविंशतितमोऽध्यायः
एवं विशेष रूप से दुध को (दर्शन) दर्शन (प्रशस्तं) प्रशस्त माना गया है किन्तु (गोजनं नप्रशस्यते) भोजन को प्रशस्त नहीं माना है।
भावार्थ-यदि स्वप्न में व्यक्ति दुध, घी, तैल और विशेष रूप से दुध को देखता है तो उसे प्रशस्त माना गया है किन्तु भोजन को देखना प्रशस्त नहीं माना गया है।। ७५||
अङ्ग प्रत्यङ्गन्युक्तस्य शरीरस्य विवर्धनम्।
प्रशस्तं दर्शनं स्वप्ने नख रोम विवर्धनम्॥६॥ (स्वप्ने) स्वप्न में (अजप्रत्यङ्ग युक्तस्य) अङ्ग प्रत्यङ्ग युक्त (शरीरस्यविवर्धनम्) शरीर की वृद्धि होते हुए (दर्शन) देखना और (नख, रोम, विवर्धनम्) नख, केश व रोमों की वृद्धि होते हुए देखना ये सब (प्रशस्तं) प्रशस्त स्वप्न है।
भावार्थ-जो स्वप्न में अपने शरीर के अङ्ग प्रत्यङ्ग को वृद्धि होते हुए देखे वा नख केश रोमादिक की वृद्धि होते हुए देखे तो समझो यह स्वप्न शुभ है प्रशस्त है अच्छा फल देने वाला है॥७६ ।।
उत्सङ्ग पूर्यते स्वप्ने यस्य थान्यैरनिन्दितः। ___ फल पुष्पैश्च संप्राप्त: प्राप्नोति महतीं श्रियम्॥७७॥
(स्वप्ने) स्वप्ने में (यस्य) जिसकी भी (उत्सङ्ग) गोद (अनिन्दितैः) सुन्दर (धान्यैः) धान्यों के द्वारा वा (फल पुष्पैश्चसं प्राप्त: पूर्यते) फल पुष्प से भर दी जावे तो (महतींश्रियम् प्राप्नोति) उसको महान लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
भावार्थ-स्वप्न में जिस मनुष्य की गोद धान्यों सेवा फल पुष्पों से भरी जावे तो वह महान लक्ष्मी प्राप्त करता है।। ७७॥
कन्या वाऽऽर्यापि वा कन्या रूपमेव विभूषिता।
प्रकृष्टा दृश्यते स्वप्ने लभते योषितः श्रियम्॥७८॥ (स्वप्नो) स्वप्नमें यदि (कन्यावाऽऽपि वा) कन्या दिखे एवं आर्यिका दिखे (वा कन्यारूपमेव विभूषिता) अथवा रूप सौन्दर्य से विभूषित कन्या दिखे (प्रकृष्टा दृश्यतें) और प्रकृशष्ट रूप से दिखे (योषित: श्रियम् लभते) तो स्त्री रूपी सुन्दर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।